मोहिनी एकादशी: एकादशी का व्रत बहुत विशेष व्रत माना जाता है. इस व्रत का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि जो भी भक्त एकादशी के व्रत को रखता है भगवान विष्णु उसे अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं. इतना ही नहीं ऐसे व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट भी भगवान विष्णु की कृपा से मिट जाते हैं.


पाप से मुक्ति
मोहिनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को पाप से भी मुक्ति दिलाता है. अंजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है. इस व्रत के दिन दान का भी महत्व है. भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद जरुरतमंंदों को भोजन कराने से भगवान प्रसन्न होते हैं.


मोक्ष की प्राप्ति
मोहिनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति में एक प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है जो उसे निरोग बनाने में सहायक होती है और मानसिक तनावों को दूर करती है.


मोहिनी एकादशी की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन जब हो रहा था तो अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों में घमासन मच गया. विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई. तब भगवान् विष्णु ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया. इस सुंदर स्त्री का रूप देखकर असुर मोहित हो उठे और अमृत कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया. इस प्रकार से देवता अमृत पीकर अमर हो गए. मान्यता है जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था उस दिन वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि थी. इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा होती है.


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व्रत की विधि
एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही आरंभ करना चाहिए. इस दिन से सूर्य अस्त के बाद से भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी की तिथि के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा करनी चाहिए.


इन बातों का ध्यान रखें
एकादशी का व्रत पूर्ण अनुशासन के साथ किया जाना चाहिए तभी इसका लाभ मिलता है. एकादशी का व्रत शुद्ध मन से करना चाहिए. मन में किसी प्रकार का पाप विचार नहीं लाने चाहिए. व्रत के दौरान बुराई, झूठ आदि से बचना चाहिए.


शुभ-मुहूर्त
मोहिनी एकादशी तिथि 3 मई को प्रात: 9 बजकर 9 मिनट से प्रारंभ होगी. 4 मई को 6 बजकर 12 मिनट पर तिथि का समापन होगा.


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