Mother’s Day 2023: मर्दस डे या मातृत्व दिवस का दिन मां को समर्पित होता है. हर साल इसे मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है. इस साल 14 मई 2023 को मदर्स डे मनाया जाएगा.


‘मां’ ऐसा अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही शरीर का रोम-रोम पुलकित हो जाता है और हृदय में भावनाओं के अनहद ज्वार उठने लगते हैं. ‘मां’ शब्द का उच्चारण करते ही शरीर की हर पीड़ा समाप्त हो जाती है.



‘मां’, कहने को तो यह छोटा सा शब्द है, लेकिन इसके बावजूद भी मां की महिमा का शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता है. मां की धन्य धारा से ही सृष्टि का श्रृजन है. नौ महीने कोख में रखना, प्रसव पीड़ा, स्तनपान कराना, लोरियां सुनाना और ममता के आंचल में छिपाकर हर दुखों से दूर रखना. यह सभी केवल एक मां ही कर सकती हैं. मां की महिमा का बखान हमारे वेद-पुराणों, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य और उपनिषद आदि में भी मिलता है. वेदों में तो मां को सर्वप्रथम पूजनीय माना गया है.


श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार, मां की सेवा से मिला आशीर्वाद इस जन्म ही नहीं बल्कि सात जन्मों के कष्टों और पापों को भी दूर कर देता है. मां की भावनात्मक शक्ति बच्चों के लिए सुरक्षा कवच के समान होती है. श्रीमद्भागवत में 'मां' को बच्चे की पहली गुरु कहा गया है.


राजा बल्लभ निघन्टु ने भी एक जगह हरीतकी के गुणों की तुलना 'मां' से कुछ इस तरह से की है-


'यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी'
अर्थ है: हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है.


तैतरीय उपनिषद में मां की महिमा का बखान कुछ इस तरह से किया गया है-

'मातृ देवो भवः'
अर्थ है: माता देवताओं से भी सर्वोपरि होती हैं.


'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी'
अर्थ है: जननी (मां) और जन्मभूमि (जन्म लेने वाला स्थान) स्वर्ग से भी बढ़कर है.  


वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण की पांडूलिपियों में एक जगह प्रभु श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं -

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
अर्थ है: लक्ष्मण! भले ही यह लंका सोने से बनी है. लेकिन फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं. क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है.


महाभारत में भी मां की महिमा का बखना किया गया है. एक बार यक्ष जब धर्मराज युधिष्ठर से पूछते हैं कि भूमि से भारी कौन है? तब इसका जवाब देते हुए युधिष्ठर कहते हैं-

'माता गुरुतरा भूमेरू'
अर्थ है, माता ही इस भूमि से कहीं अधिक भारी हैं.


महर्षि वेदव्यास ने भी मां की महिमा का बखान करते हुए लिखा है-

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
अर्थ है: मां के जैसी कोई छाया नहीं है, मां के समान कोई सहारा नहीं है, मां के समान कोई रक्षक नहीं है और मां के समान कोई प्रिय चीज भी नहीं है.


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