Mother’s Day 2024,Bamakhepa and Maa Tara Story: संसार में हम कई रिश्तों के बंधन में बंधे होते हैं. लेकिन मां और बच्चे का रिश्ता अनमोल होता है. यह इसलिए भी खास होता है क्योंकि धरती पर जन्म लेने से पहले ही बच्चे अपने मां के शरीर का हिस्सा होते हैं.


मां के मूल्य, ममता और समर्पण भाव को महत्व देने के लिए ही हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है, जोकि इस साल 12 मई 2024 को है.


हर युग और सदी में ईश्वर और भक्त के बीच अनूठा रिश्ता रहा है. भक्ति भी ऐसी कि किसी ने ईश्वर को अपना साथी बना लिया, किसी ने भाई, किसी ने मित्र तो कोई ईश्वर की भक्ति में रम गया. ईश्वर और भक्त के बीच अनूठे रिश्तों के कई उदाहरण हैं. इन्हीं में एक है बामाखेपा और मां तारा के बीच का रिश्ता.


कौन थे बामाखेपा


बामाखेपा मां तारा की भक्ति में ऐसे रम गए कि उन्हें अपनी मां मानने लगे और बोड़ो मां (बड़ी मां) कहकर पुकारने लगे. इन्होंने अपना सारा जीवन देवी काली मां के रूप तारा मां को समर्पित कर दिया. आइये जानते हैं कलियुग के बामाखेपा और तारापीठ की तारा मां की कहानी के बारे में-


महायोगी बामाखेपा का असली नाम बामा चरण चटोपाध्याय था. इनका जन्म 1838 में पश्चिम बंगाल के तारापीठ के निकट आटला ग्राम में हुआ था. इनके नाम के आगे खेपा लगने का कारण भी मां तारा के प्रति इनकी असीम भक्ति से जुड़ा है.


दरअसल बंगाली भाषा में खेपा का अर्थ पागल से होता है. मां तारा के प्रति इनकी भक्ति पागलपन की तरह थी, जिस कारण लोग इन्हें प्रेम या सम्मानपूर्वक बामाखेपा कहने लगे.


बामाखेपा ने अपनी श्रद्धा से पाई तारापीठ की तारा मां की ममता


बामाखेपा बचपन से ही तारा मां की भक्ति में लीन रहा करते थे. बचपन में एक बार वे अचानक तारापीठ पहुंच गए और यहां उन्हें कैलाशपति बाबा का सानिध्य प्राप्त हुआ. इन्होंने बाबाखेपा को तंत्र, योग और भक्ति सिखाई. इस तरह से बामाखेपा तारा मां की भक्ति के ऐसे स्तर पर पहुंच गए जिसकी कल्पना बड़े-बड़े भक्त भी नहीं करते.


मान्यता है कि, बामाखेपा को मां तारा के दर्शन होते थे. इतना ही नहीं एक मां का अपने बच्चे के साथ जैसा रिश्ता होता है तारा मां और बामाखेपा के बीच ऐसा ही अटूट रिश्ता था.


कहा जाता है कि, तारा मां बामाखेपा के साथ खाना खातीं, उन्हें गोद में सुलाती, बातचीत करतीं और बामाखेपा के हाथ से लगाया गया भोग भी ग्रहण करतीं. इस तरह से बामाखेपा ने अपना सारा जीवन तारा मां की भक्ति में समर्पित कर दिया और 1922 में बामाखेपा का निधन हो गया.


बामाखेपा को आज भी तारा मां का पुत्र माना जाता है और इन्हें तारा मां के भक्तों में वह स्थान प्राप्त हो, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.


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