मानस मंत्र: सुमिरि पवनसुत पावन नामू…हनुमान जी ने राम नाम का जाप करके वश में किया श्रीराम को
Chaupai, ramcharitmanas: श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद् भक्त के द्वारा की गई है. मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं -
Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas: तुलसी दास जी ने नाम की महिमा बताता हुए यह भी कह दिया कि मेरे जैसा निकृष्ट भी पवित्र हो गया है. नाम की महिमा स्वयं राम से भी ज्यादा है. श्रीनारद जी ने भी जो कहां है उसको भी तुलसी बाबा ने बहुत सुंदर तरीके से बताया है. राम नाम का जाप करने से सभी प्रकार की वस्तुओं की प्राप्ति होती है. इसको विस्तार से समझते हैं -
नाम प्रसाद संभु अबिनासी।
साजु अमंगल मंगल रासी।।
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी।
नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी।।
नाम ही के प्रसाद से शिव जी अविनाशी हैं और अमङ्गल वेष वाले होने पर भी मङ्गल की राशि हैं। शुकदेव जी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगीगण नाम के ही प्रसादसे ब्रह्मानन्द को भोगते हैं.
नारद जानेउ नाम प्रतापू।
जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू।।
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू।
भगत सिरोमनि भे प्रहलादू ।।
नारद जी ने नाम के प्रताप को जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं, हरि को हर प्यारे हैं और आप श्री नारद जी हरि और हर दोनों को प्रिय हैं। नाम के जप ने से प्रभु ने कृपा की, जिससे प्रह्लाद भक्त शिरोमणि हो गये.
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ।
पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ।।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू ।
अपने बस करि राखे रामू ।।
ध्रुव जी ने ग्लानि से विमाता के वचनों से दुखी होकर सकाम भाव से हरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान ध्रुव लोक प्राप्त किया। हनुमान् जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्रीरामजी को अपने वश में कर रखा है.
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ।
भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ।।
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।
नीच अजामिल, गज और गणिका भी श्रीहरि के नाम के प्रभाव से मुक्त हो गये. मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ, राम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते.
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु।।
कलियुग में राम का नाम कल्पतरु मनचाहा पदार्थ देने वाला और कल्याण का निवास मुक्ति का घर है, जिसको स्मरण करने से निकृष्ट तुलसी दास तुलसी के समान पवित्र हो गया.
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका।
भए नाम जपि जीव बिसोका।।
बेद पुरान संत मत एहू।
सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
केवल कलियुग की ही बात नहीं है, चारों युगों में, तीनों कालों में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोक रहित हुए हैं. वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री रामजी में या राम नाम में प्रेम होना है.
ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें।
द्वापर परितोषत प्रभु पूजें।।
कलि केवल मल मूल मलीना।
पाप पयोनिधि जन मन मीना।।
पहले सत्य युगमें ध्यान से, दूसरे त्रेता युग में यज्ञ से और द्वापर में पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं, परंतु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है, इसमें मनुष्यों का मन पाप रूपी समुद्र में मछली बना हुआ है अर्थात् पाप से कभी अलग होना ही नहीं चाहता, इससे ध्यान, यज्ञ और पूजन नहीं बन सकते.
नाम कामतरु काल कराला।
सुमिरत समन सकल जग जाला।।
राम नाम कलि अभिमत दाता।
हित परलोक लोक पितु माता।।
ऐसे कराल कलियुग के काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है. कलियुग में यह राम नाम मनोवाञ्छित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है अर्थात परलोक में भगवान का परम धाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है.
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलंबन एकू।।
कालनेमि कलि कपट निधानू।
नाम सुमति समरथ हनुमानू।।
कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है; राम नाम ही एक आधार है। कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के लिये रामनाम ही बुद्धिमान् और समर्थ श्री हनुमान जी हैं.
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।।
राम नाम श्री नृसिंह भगवान है, कलियुग हिरण्य कशिपु है और जप करने वाले जन प्रह्ललाद के समान हैं, यह राम नाम देवताओं के शत्रु कलियुग रूपी दैत्य को मार कर जप करने वालों की रक्षा करेगा.
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