मानस मंत्र : जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं, भले कमल की तरह देते है सुख, बुरे जोंक की तरह पीते है खून
Chaupai, ramcharitmanas : श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद् भक्त के द्वारा की गई है. मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं -
Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas : रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास जी भले और बूरे लोगों के गुण और अवगुण को अद्भुत तरीके से बताया है दोनों ही इस संसार में जन्म लेते हैं किंतु किसी में गुण और किसी में अवगुण व्याप्त हो जाता है. तुलसी बाबा ने बहुत सुंदर तरीके से इसकी तुलना कमल व जोंक से की है.
बंदउँ संत असज्जन चरना।
दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।।
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं।
मिलत एक दुख दारुन देहीं।।
अब मैं संत व असंत के चरणों की वन्दना करता हूँ भले-बूरे दोनों ही लोग दुख देने वाले होते हैं, इनका समान रूप से वर्णन किया है तुलसीदास जी कहते है दुख तो दोनों ही देते है लेकिन उनमें अंतर यह है कि संत जाते समय दुख देते है और असंत यानी बुरे लोग आते समय दुख देते हैं संत लोगों का वियोग कभी न हो और वह सदा सत्संग भगवान के चरित्र का अमृत पान कराते रहें और दुष्ट या बूरे लोग जब जीवन में आते हैं तो बहुत सारे दोष देते है और भगवत चर्चा से दूर करते है इसलिए व कष्ट देते हैं.
उपजहिं एक संग जग माहीं।
जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।।
सुधा सुरा सम साधु असाधू।
जनक एक जग जलधि अगाधू।।
संत और असंत इसी संसार में ही पैदा होते हैं लेकिन कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं. कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है. साधु अमृत के समान मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला और असाधु मदिरा के समान मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला है, दोनों को उत्पन्न करने वाला संसार रूपी समुद्र एक ही है. शास्त्रों में समुद्र मंथन से ही अमृत और मदिरा दोनों की उत्पत्ति बतायी गयी है.
भल अनभल निज निज करतूती।
लहत सुजस अपलोक बिभूती।।
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू।
गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू।।
गुन अवगुन जानत सब कोई।
जो जेहि भाव नीक तेहि सोई।।
भले और बुरे अपनी-अपनी करनी के अनुसार यश और अपयश पाते हैं. साधु अमृत, चन्द्रमा और गंगा जी के समान है दुष्ट विष, अग्नि और कलियुग के पापों की नदी अर्थात कर्मनाशा और हिंसा करने वाले लोगों के समान है. इनके गुण-अवगुण सब कोई जानते हैं किन्तु जिसे जो भाता है, उसे वही अच्छा लगता है.
दोहा—
भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु।।
भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण किये रहता है. अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष मारने में.
खल अघ अगुन साधु गुन गाहा।
उभय अपार उदधि अवगाहा।।
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने।
संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने।।
दुष्टों के पापों और अवगुणों की और साधुओं के गुणों की कथाएँ—दोनों ही अपार और अथाह समुद्र हैं. इसी से कुछ गुण और दोषों का वर्णन किया गया है, क्योंकि बिना पहचाने उनका ग्रहण या त्याग नहीं हो सकता.
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए।
गनि गुन दोष बेद बिलगाए।।
कहहिं बेद इतिहास पुराना।
बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना।।
भले, बुरे सभी को ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया है, पर गुण और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है. वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह सृष्टि गुण-अवगुणों से सनी हुई है.
बिनु सतसंग बिबेक न होई… सत्संग का मिलता है तुरंत फल, कौआ बने कोयल और बगुला बने हंस