(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
मानस मंत्र: ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि.. वरदान देने वाले स्वयं राम नाम जप कर के प्राप्त करते हैं वरदान
Chaupai, ramcharitmanas: श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद् भक्त के द्वारा की गई है. मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं -
Motivational Quotes, Chaupai, Ramcharitmanas: तुलसी दास जी ने बहुत ही विस्तार से राम नाम की महिमा का वर्णन किया है कई तरीके से राम नाम के प्रभाव की तुलना करते हुए नाम को अधिक बली बताया. उन्होंने यहां तक स्पष्ट किया कि जो वरदान देते हैं वह स्वयं राम नाम से वर प्राप्त करते हैं. मुख्य वरदाता तीन हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश. यानी यह भी रामनाम जप कर ही सिद्ध हुए हैं.
राम भगत हित नर तनु धारी।
सहि संकट किए साधु सुखारी।।
नामु सप्रेम जपत अनयासा।
भगत होहिं मुद मंगल बासा।।
श्री रामचन्द्रजी ने भक्तों के हित के लिये मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया, परन्तु भक्त गण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुए सहज ही में आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं.
राम एक तापस तिय तारी।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी।।
रिषि हित राम सुकेतुसुता की।
सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी।।
सहित दोष दुख दास दुरासा।
दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा।।
भंजेउ राम आपु भव चापू।
भव भय भंजन नाम प्रतापू।।
श्री रामजी ने एक तपस्वी की स्त्री अहल्या को ही तारा, परन्तु नाम ने करोड़ों दुष्टों की बिगड़ी बुद्धि को सुधार दिया. श्री रामजी ने ऋषि विश्वामित्र के हित के लिये एक सुकेतु यक्ष की कन्या ताड़का की सेना और पुत्र सुबाहु सहित समाप्ति की, परन्तु नाम अपने भक्तों के दोष, दुःख और दुराशाओं का इस तरह नाश कर देता है जैसे सूर्य रात्रि का. श्री रामजी ने तो स्वयं शिवजी के धनुष को तोड़ा, परन्तु नाम का प्रताप ही संसार के सब भयों का नाश करने वाला है.
दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन।
जन मन अमित नाम किए पावन।।
निसिचर निकर दले रघुनंदन।
नामु सकल कलि कलुष निकंदन।।
प्रभु श्री रामजी ने भयानक दण्डक वन को सुहावना बनाया, परन्तु नाम ने असंख्य मनुष्यों के मनों को पवित्र कर दिया. श्री रघुनाथ जी ने राक्षसों के समूह को मारा, परन्तु नाम तो कलियुग के सारे पापों की जड़ उखाड़ने वाला है.
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ।।
श्री रघुनाथ जी ने तो शबरी, जटायु आदि उत्तम सेवकों को ही मुक्ति दी परन्तु नाम ने अगनित दुष्टों का उद्धार किया. नाम के गुणों की कथा वेदों में प्रसिद्ध है.
राम सुकंठ बिभीषन दोऊ।
राखे सरन जान सबु कोऊ।।
नाम गरीब अनेक नेवाजे।
लोक बेद बर बिरिद बिराजे।।
श्री रामजी ने सुग्रीव और विभीषण दो को ही अपने शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं, परंतु नाम ने अनेक गरीबों पर कृपा की है. नाम का यह सुन्दर विरद लोक और वेद में विशेष रूप से प्रकाशित है.
राम भालु कपि कटकु बटोरा।
सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा।।
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं।
करहु बिचारु सुजन मन माहीं।।
श्री राम जी ने तो भालू और बन्दरों की सेना बटोरी और समुद्र पर पुल बाँध ने के लिये थोड़ा परिश्रम नहीं किया, परंतु नाम लेते ही संसार-समुद्र सूख जाता है. सज्जन गण मन में विचार कीजिये कि दोनों में कौन बड़ा है.
राम सकुल रन रावनु मारा।
सीय सहित निज पुर पगु धारा।।
राजा रामु अवध रजधानी।
गावत गुन सुर मुनि बर बानी।।
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती।
बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती।।
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें।
नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें।।
श्री रामचन्द्र जी ने कुटुम्ब सहित रावण को युद्ध में मारा, तब सीता सहित उन्होंने अपने नगर अयोध्या में प्रवेश किया. राम राजा हुए,अवध उनकी राजधानी हुई, देवता और मुनि सुन्दर वाणी से जिन के गुण गाते हैं. परंतु सेवक भक्त प्रेम पूर्वक नाम के स्मरण मात्र से बिना परिश्रम मोह की प्रबल सेना को जीत कर प्रेम में मग्न हुए अपने ही सुख में विचरते हैं, नाम के प्रसाद से उन्हें सपने में भी कोई चिन्ता नहीं सताती.
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ।।
इस प्रकार नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है. यह वरदान देने वालों को भी वर देने वाला है. श्री शिवजी ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ करोड़ रामचरित्र में से इस ‘राम’ नाम को सार रूप से चुनकर ग्रहण किया है.
निर्गुण और सगुण से भी ऊपर है राम नाम महिमा, राम नाम के जाप से होते हैं सब दुख दूर
आखर मधुर मनोहर दोऊ, बरन बिलोचन जन जिय जोऊ, राम के दोनों अक्षर मधुर और मनोहर