मानस मंत्र: मंगल भवन अमंगल हारी, जीवन में जब हो रहा हो सब अमंगल तो राम नाम जपने से होता है मंगल
श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद् भक्त के द्वारा की गई है. मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं -
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मानस मंत्र : रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास जी ने सभी की वंदना करने के पश्चात अपनी रचना में रघुबर की महिमा का प्रभाव बताया है. श्री राम नाम यश की क्षाप जिस वाणी पर होती है उसका संतों में आदर होता है और मूल्य बढ़ जाता है जिस प्रकार कागज पर नोट की क्षाप पढ़ने से मूल्यवान हो जाता है.
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
श्री रघुनाथ जी का उदार नाम है यानी निस्वार्थ भाव से मांग से अधिक देने वाले हैं. जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन है और अमंगल को हरने वाले हैं, श्री राम नाम को पार्वती जी सहित भगवान शिव जी सदा जपा करते हैं.
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी।
सोह न बसन बिना बर नारी।।
जो अच्छे कवि के द्वारा रची हुई बड़ी अनूठी कविता है, वह भी राम नाम के बिना शोभा नहीं पाती. जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार से सुसज्जित होने पर भी वस्त्र के बिना शोभा नहीं देती.
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी।
राम नाम जस अंकित जानी।।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही।
मधुकर सरिस संत गुनग्राही।।
इसके विपरीत, कुकवि की रची हुई सब गुणों से रहित कविता को भी, राम के नाम एवं यश से अंकित जानकर, बुद्धिमान लोग आदर पूर्वक कहते और सुनते हैं क्योंकि संत जन भौंरे की भाँति गुण को ही ग्रहण करने वाले होते हैं.
जदपि कबित रस एकउ नाहीं।
राम प्रताप प्रगट एहि माहीं।।
सोइ भरोस मोरें मन आवा।
केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा।।
यद्यपि मेरी इस रचना में कविता का एक भी रस नहीं है, इसमें तो केवल श्री राम जी का प्रताप प्रकट है. मेरे मन में यही एक भरोसा है. भले संग से भला, किसने बड़ाई नहीं पायी?
धूमउ तजइ सहज करुआई।
अगरु प्रसंग सुगंध बसाई।।
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी।
राम कथा जग मंगल करनी।।
धुआँ भी अगर के संग से सुगन्धित होकर अपने स्वाभाविक कड़ुवे पन को छोड़ देता है. मेरी कविता अवश्य भद्दी है, परन्तु इसमें जगत का कल्याण करने वाली राम कथा रूपी उत्तम वस्तु का वर्णन किया गया है.
छंद—
मंगल करनि कलिमलहरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की।।
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी।
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री रघुनाथ जी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है. मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी की चाल की भाँति टेढ़ी है. प्रभु श्री रघुनाथ जी के सुन्दर यश के संग से यह कविता सुन्दर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी. श्मशान की अपवित्र राख भी श्री महादेव जी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है.
दोहा—
प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग।।
श्री राम जी के यश के संग से मेरी कविता सभी को अत्यन्त प्रिय लगेगी,
मलयगिरि पर नीम, बबूल आदि भी जो वृक्ष हैं उनमें भी मलयगिरि के असली चन्दन के वृक्ष की सुगंध वायु द्वारा लगने से ही चन्दन जैसी सुगंध आ जाती है. वह सभी वृक्ष अपने आकार में ही चन्दन के शुभ गुण से विभूषित भी हो जाते हैं. लोग इन वृक्षों की लकड़ी को चन्दन मानकर माथे पर लगाते हैं और देव पूजन के काम में भी लाते हैं. कोई भी चंदन की सुगन्ध के सामने फिर यह नहीं सोचता कि यह तो समान्य वृक्ष की लकड़ी है. गोस्वामी जी कहते हैं कि इसी तरह मेरी कविता की भाषा नीम, बबूल आदि के समान है. राम यश मलयगिरि है उसका संग पाकर मेरी कविता का भी चन्दन के समान आदर होगा.
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