Safalta Ki Kunji Motivational Thoughts In Hindi: ‘अहंकार’ ऐसी चीज है जो आपका सबकुछ छीन सकती है. कई बार ऐसा होता है कि थोड़ी सी योग्यता, ज्ञान, धन आदि प्राप्त कर लेने पर लोगों के मन में घमंड या अहंकार पैदा हो जाता है. ऐसे लोग सफलता को प्राप्त नहीं कर पाते और कभी-कभी तो खुद की ही हानि कर लेते हैं. भगवान शिव और रावण का एक प्रसंग है, जिससे यह पता चलता है कि क्रोध या अहंकार के कारण योग्यता, ज्ञान और बल के बूते पर भी आप असफल हो सकते हैं.


भगवान शिव और रावन का एक प्रसंग


रावण और भगवान शिव से जुड़ी एक प्रचलित कथा के अनुसार, रावण शिवजी का भक्त था. रावण शिवजी को अपना ईष्ट और गुरु मानता था. एक दिन रावण को लगा कि मैं सोने की लंका में रहता हूं और मेरे गुरु शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं. क्यों ना मैं शिवजी को लंका ले आऊं. यह सोचकर रावण शिवजी को लाने के लिए कैलाश पर्वत की ओर निकले. कैलाश पर्वत पहुंचने से पहले रास्ते में उसकी मुलाकात शिवजी के वाहन नंदी से हुई.


नंदी ने रावण को प्रणाम किया. लेकिन रावण ने अहंकार में नंदी को कोई उत्तर देना उचित नहीं समझा. इसके बाद नंदी ने रावण से विनम्रता पूर्वक बात की. लेकिन रावण ने नंदी का अपमान कर दिया. रावण ने अहंकार स्वरूप कहा कि वह शिवजी को लंका ले जाने के लिए आया है. नंदी ने कहा, भगवान शिव को उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई कहीं नहीं ले जा सकता है. रावण को अपने बल पर खूब घमंड था. उसने नंदी से कहा यदि शिवजी नहीं माने, तो मैं पूरा कैलाश पर्वत ही उठाकर ले जाऊंगा. 

इधर कैलाश पर्वत पर बैठे शिवजी सब देख रहे थे. रावण ने अपना एक हाथ कैलाश पर्वत को उठाने के लिए चट्टान के नीचे रख दिया और इतने में ही कैलाश हिलने लगा. रावण ने जब पूरा हाथ कैलाश पर्वत की चट्टान के नीचे फंसा दिया तब शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया. इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे ही फंस गया.


शिवजी यह सब देख अपने आसन पर बैठ निर्विकार मुस्कुरा रहे थे. रावण को अपनी भूल का अहसास हो गया. इसी समय रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) की रचना की, जिसे सुनकर शिव ने रावण को मुक्त कर दिया.


सीख- व्यक्ति चाहे कितना भी योग्य, बलवान और शक्तिशाली क्यों न हो उसे कभी भी घमंड या अहंकार नहीं करना चाहिए. क्योंकि ‘अहंकार’ योग्यता होने पर भी असफलता का कारण बन सकता है.  


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