Mahabharat Story: महाभारत का कथा जीवन के मूल्यों के बारे में बताती है. ये कथा सिर्फ युद्ध के बारे में ही जानकारी नहीं देती है, बल्कि जीवन को किस तरह से जीना चाहिए इस बारे में भी बताती है. महाभारत की कथा इन विषयों के महत्व को भी जानने और समझने के लिए प्रेरित करती है-



  • जीवन

  • धर्म

  • राजनीति

  • समाज

  • राष्ट्र

  • ज्ञान

  • भक्ति

  • सेवा

  • अनुशासन

  • विज्ञान

  • दर्शन

  • कूटनीति

  • सैन्य विज्ञान

  • प्रबंधन


महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. इस युद्ध के 10 दिनों तक भीष्म पितामह सेनापति थे, भीष्म पितामह के बाद कर्ण के कहने पर दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया था. युद्ध में इन दोनों का ही वध छल पूर्वक किया गया था. इसके पीछे असली वजह क्या थी, इसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को बताया था.


श्रीकृष्ण - रुक्मिणी संवाद
18 दिन बाद जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाता है तो भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौटते हैं तो, रुक्मिणी गुस्से में होती हैं. भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी के चेहरे के भाव को भांप लेते हैं और प्रश्न करते हैं-  'रुक्मिणी! क्या कारण है? तुम मेरे लौटने से प्रसन्न नहीं हो?'


तब रुक्मिणी कहती हैं- 'प्रभु! ऐसी बात नहीं है, बस मन कुछ शंका और प्रश्न हैं, जिनका उत्तर सिर्फ आप ही दे सकते हैं.' तब रुक्मिणी, श्रीकृष्ण से पूछती हैं- 'आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह के वध में क्यों सहयोग किया, जबकि ये दोनों तो धर्म का साथ देने वाले थे.'


श्रीकृष्ण ने इस पर कहा- 'इसमे कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि भीष्म पितामह और आचार्य द्रोणाचार्य दोनों ने ही जीवन पर धर्म का पालन किया. लेकिन इन दोनों के सभी अच्छे फलों को एक पाप ने नष्ट कर दिया.'


द्रोपदी का चीरहरण
इस उत्तर को सुनकर रुक्मिणी हैरान होकर पूछती हैं- 'ऐसा कौन सा पाप, इन दोनों ने किया था?' श्रीकृष्ण कहते हैं- 'चीरहरण.' रुक्मिणी को चीरहरण की घटना की याद दिलाते हुए श्रीकृष्ण बताते हैं- 'जब भरे दरबार में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था, तो वहां पर भीष्म पितामह और आचार्य द्रोणाचार्य भी विराजमान थे. ये दोनों चाहते तो वरिष्ठ और पूज्य होने के कारण इस कृत्य के लिए दु:शासन को रोक भी सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं किया. इसीलिए इनके इस पाप के चलते, सभी प्रकार की धर्मनिष्ठा समाप्त हो गई.'


रुक्मिणी को श्रीकृष्ण की बात समझ में आ गई है. लेकिन इसके तुरंत बाद ही उन्होनें श्रीकृष्ण से कर्ण के बारे में प्रश्न किया- 'तो फिर! कर्ण का वध क्यों कराया, वो तो दानवीर था. इंद्र को भी उसने खाली हाथ नहीं भेजा. उनकी दानवीरता तो तीनों लोक में प्रसिद्ध थी. कर्ण क्या दोष था?'


कर्ण वध
श्रीकृष्ण ने बड़ी विनम्रता से कहते हैं- 'सब बातें सही हैं, लेकिन याद करो जब रणभूमि में अभिमन्यु घायल होकर भूमि पर अचेत होकर गिर पड़ा तो उसने समीप खड़े कर्ण से जल मांगा. कर्ण जहां पर खड़ा था वहां पर एक गड्ढे में जल भरा हुआ था, लेकिन कर्ण ने घायल और मरते हुए अभिमन्यु को जल की एक बूंद तक नहीं दी. उसके ऐसा करने से उसके द्वारा जीवन भर किए गए दान का महत्व समाप्त हो गया और युद्ध में उसी गड्ढे में कर्ण के रथ का पहिया धंस गया और वो मृत्यु को प्राप्त हुआ.' 


श्रीकृष्ण के इन उत्तरों को सुनने के बाद रुक्मिणी का गुस्सा शांत हुआ. श्रीकृष्ण कहते हैं- 'व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्म, कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं. इनका फल भोगना ही पड़ता है.'