Motivational Story in Hindi, Vikram Betal : माना जाता है कि बैताल पचीसी कहानियों का एक ग्रन्थ है. बैताल पचीसी के रचयिता बेतालभट्ट को माना जाता है. बैताल पचीसी की कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति के बारे में बताती हैं. बेताल नाम का प्रेत राजा विक्रम को प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है, और कहानी के अंत में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा उत्तर देने के लिए विवश हो जाता है. बैताल की राजा से शर्त थी कि यदि राजा बोलेगा तो वो फिर से पेड़ पर चला जाएगा. अधिक जानने के लिए आइए जानते हैं बैताल पचीसी की आरंभ की कहानी-


सैकड़ों साल पुरानी बात है. धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करता था. राजा की चार रानियां थीं. उसके 6 पुत्र थे. एक दिन राजा की मौत हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा. उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा. अपनी प्रतिभा से वो बहुत जल्द जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा. एक दिन उसके मन में आया कि उसे अन्य देशों का भ्रमण करना चाहिए. वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा. उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था. एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा. ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी. ब्राह्मणी बोली, हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें. इससे तो मरना ही अच्छा है. तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ.


ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास पुहंचा. भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को स्वर्ण मुद्राएं देकर विदा कर दिया. भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था. उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया. रानी की दोस्ती शहर के कोतवाल से थी. उसने वह फल उसे को दे दिया. कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था. वह उस फल को उस वेश्या को दे आया. वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए. वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया. भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया. लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया. उसे  दुख हुआ. लेकिन उसने किसी से कुछ कहा नहीं. उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया. रानी ने कहा, मैंने उसे खा लिया. 


राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया. रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी. भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी. वह बहुत दु:खी हुआ. उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है. इसमें अपना कोई नहीं. वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया. फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया. भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी खाली हो गयी. जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया. 


वह रात-दिन वहीं रहने लगा. भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया. वहां एक देव की मुलाकात राजा से हुई. जिसने बताया कि हे राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे. तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के. तुम यहां का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था. कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है. अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है. उससे बचकर रहना. इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया. राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई. एक दिन शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया. राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, और सेनापति को दे दिया. योगी आता और राजा को एक फल दे जाता. संयोग से एक दिन राजा ने योगी द्वारा दिए गए फल को एक वानर को दे दिया. वानर ने फल तोड़ा तो उसमें से बड़ा सा हीरा निकला. हीरे की चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं. राजा को बड़ा अचरज हुआ. उसने योगी से पूछा, आप यह हीरा मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं. योगी ने जवाब दिया, महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए.


राजा ने सेनापति को बुलाकर सभी फल मंगवाये. तुड़वाने पर सभी में से एक-एक हीरा निकला. इतने हीरा देखकर राजा को बड़ी खुशी हुई. उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा. जौहरी बोला, महाराज, ये हीरा इतने कीमती हैं कि इनका मोल करोड़ों रुपयों में भी नहीं आंका जा सकता. एक-एक हीरा एक-एक राज्य के बराबर है. यह सुनकर राजा योगी का हाथ पकड़कर गद्दी पर ले गया. राजा उसे अकेले में ले गया. वहां जाकर योगी ने कहा, महाराज, बात यह है कि गोदावरी नदी के किनारे श्मशान में मैं एक मंत्र सिद्ध कर रहा हूं. उसके सिद्ध हो जाने पर मेरा मनोरथ पूरा हो जायेगा. तुम एक रात मेरे पास रहोगे तो मंत्र सिद्ध हो जायेगा. एक दिन रात को तुम अकेले मेरे पास आ जाना. राजा ने हां कर दी.  वह दिन आने पर राजा अकेला वहां पहुंचा. 


योगी ने उसे अपने पास बिठा लिया. थोड़ी देर बैठकर राजा ने पूछा, महाराज, मेरे लिए क्या आज्ञा है. योगी ने कहा, राजन्, यहां से दक्षिण दिशा में दो कोस की दूरी पर श्मशान में एक सिरस के पेड़ पर एक मुर्दा लटका है. उसे मेरे पास ले आओ, तब तक मैं यहां पूजा करता हूं. यह सुनकर राजा वहां. से चल दिया. अमावस की तरह काली रात थी. बिजली कड़क रही थी, पानी बरस रहा था. डरवानी आवाजें रास्ता रोकने का प्रयास कर रही थीं. सांप जहरीले जीव- जंतु इधर उधर भाग रहे थे. राजा ने हिम्मत नहीं हारी. जब वह श्मशान में सिरस के पेड़ के पास पहुंच गया. पेड़ पर रस्सी से बंधा प्रेत लटक रहा था. राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी. प्रेत नीचे घिर पड़ा. राजा ने नीचे आकर पूछा, तू कौन है. राजा का इतना कहना था कि वह प्रेत हंस पड़ा. राजा को बड़ा अचरज हुआ. तभी वह प्रेत फिर पेड़ पर जा लटका.


राजा फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काट, प्रेत को अपनी पीठ पर लाद लिया. रास्ते में वह बोला, मैं बेताल हूं. तू कौन है और मुझे कहां ले जा रहा है. राजा ने परिचय दिया और कहा कि मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूं.बेताल बोला, राजा मैं एक शर्त पर चलूँगा. अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर पेड़ पर वापिस आ जाऊंगा. राजा ने उसकी बात मान ली. फिर बेताल बोला, पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं. जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में. बेहतर होगा कि हमारा सफर अच्छी बातों की चर्चा में बीत जाये. इसलिए राजा मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूं. इस प्रकार से बैताल पचीसी की कहानियों का आरंभ होता है.


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