Buddha Amritwani: गौतम बुद्ध का सबसे प्रिय शिष्य कौन था, जिसे उन्होंने बताया ‘शीलगंध’ का ये रहस्य
Buddha Amritwani: गौतम बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य का नाम आनंद था. एक बार आनंद के मन में उठी जिज्ञासा को शांत करते हुए बुद्ध ने उसे शीलगंध के रहस्य और जीवन में इसके महत्व के बारे में बताया.
Gautam Buddha Amritwani in Hindi: आनंद जोकि गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्यों में थे. एक बार वह श्रावस्ती में विपश्यना कर रहे थे. विपश्यना बुद्ध की कई शिक्षाओं में एक है. शाम का समय था और इसी बीच आनंद का ध्यान पास में खिले सुंदर फूलों की ओर गया.
फूलों को देख आनंद उसके सुगंध के बारे में सोचने लगे कि, ‘इन फूलों की सुगंध कितनी अच्छी है. लेकिन सारी सुगंध उसी दिशा में जा रही है, जिस ओर हवा बह रही है. फूलों की सुगंध तो चारों ओर फैलनी चाहिए. आखिर ऐसा क्यों है कि, फूलों सुगंध सभी दिशाओं में न फैलकर केवल हवा की दिशा में ही जा रही है.
आनंद को याद आया कि, बुद्ध ने तीन प्रकार के उत्तम गंधों के बारे में बताया था, जोकि मूलगंध, सारगंध और पुष्पगंध हैं. इसके बाद आनंद सोचने लगे कि, क्या कोई ऐसी सुगंध भी हो सकती है जो हवा के विपरीत दिशा में भी फैले? यानी सभी ओर फैले. यह सोचते हुए अपने मन उठे इस प्रश्न के उत्तर के लिए वे बुद्ध के के पास गए.
बुद्ध ने बताई शीलगंध की महत्ता
आनंद ने बुद्ध से कहा, भंते! क्या कोई ऐसी भी सुगंध भी है जो सभी दिशाओं में फैलती हो?. बुद्ध ने आनंद से कहा, मूलगंध, सारगंध और पुष्पगंध इन तीनों गंध से परे भी एक गंध है जिसे ‘शीलगंध’ (चरित्र की गंध) कहा जाता है. जो व्यक्ति बुद्ध, धर्म और संघ के त्रिरत्नों की शरण में जाता है और शिक्षा को जीवन में उतारता है उसमें यह गंध होती है.’
जो दुर्गुण और बुरे विचारों से दूर रहता है और धर्म का पालन करता है, दान करता है, सभी इंद्रियों पर संयम रखता है और जीवन में त्याग को महत्व देता है,उसी व्यक्ति में शीलगंध पाई जाती है. ऐसे व्यक्ति की सुगंध चारों तरफ फैलती है और लोग उसका सम्मान करते हैं. बुद्ध की बात सुनकर आनंद ने कहा.. ‘भंते! और इसी गंध से ही तो पूरा संसार आगे बढ़ रहा है.’
धम्म पद में मिलता है शीलगंध का उल्लेख
धम्मपद पालि बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध साहित्य ग्रंथ है, जिसे गीता के समान पवित्र माना गया है. इसमें मूल बौद्ध शिक्षाओं का संग्रह है. धम्म पद में शीलगंध को लेकर कहा गया है-
न पुप्फ गन्धो पटिवातमेति, न चन्दनं तगरमल्लिकावा
सतञ्च गन्धो पटिवातमेति, सब्बा दिसा सप्पुरिसो पवायति.
अर्थ है: चंदन, तगर, कमल और जूही. इन सभी फूलों की सुगंध से बढ़कर शील-सदाचार की सुगंध है.
चन्दनं तगरं वापि, उप्पलं अथ वस्सिकी
एतेसं गंधजातानं, सीलगन्धो अनुत्तरो.
अर्थ है: तगर और चंदन की गंध, उत्पल (कमल) और चमेली की गंध से भी बढ़कर शीलगंध अधिक श्रेष्ठ है.
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