Motivational Story: राजा हरिश्चंद्र को सत्यवादी और महादानी क्यों कहा जाता है? सत्य के लिए छोड़ दिया था राजपाट और परिवार
Motivational Story: राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी और दानवीर थे. आज भी उनके दानवीरता की कहानी सुनाई और पढ़ाई जाती है. सत्य के मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने राजपाट, पत्नी और पुत्र का मोह भी त्याग दिया.
![Motivational Story: राजा हरिश्चंद्र को सत्यवादी और महादानी क्यों कहा जाता है? सत्य के लिए छोड़ दिया था राजपाट और परिवार motivational story Daanveer Raja Harishchandra he is greatest king Had left kingdom and family for truth Motivational Story: राजा हरिश्चंद्र को सत्यवादी और महादानी क्यों कहा जाता है? सत्य के लिए छोड़ दिया था राजपाट और परिवार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/03/02/5b5357899704cdf5011ea42d6905b6df1677752683635466_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Motivational Story, Daanveer Raja Harishchandra Story in Hindi: जब भी सत्य और दान की चर्चा होती है राजा हरिश्चंद्र (Raja Harishchandra) का नाम लिया जाना स्वाभाविक है. सच बोलने और दान देने के लिए उनकी मिसाल आज भी दी जाती है. इसलिए भी उन्हें सत्यवादी और दानवीर राजा हरिश्चंद्र कहा जाता है. वो ऐसे दानी थे, जो अगर सपने में भी किसी को दान देते हुए देख ले तो उसे पूरा जरूर करते थे. उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलने के लिए अपने राजपाट से लेकर पत्नी तारामती और पुत्र रोहिताश्व का भी त्याग कर दिया.
भले ही अपनी सत्यवादी और दानवीरता छवि के कारण राजा हरिश्चंद्र की काफी लोकप्रियता थी. लेकिन उनका पारिवारिक जीवन अत्यंत दुखी रहा. जानते हैं राजा हरिश्चंद्र के त्याग और सत्यवादिता की कहानी के बारे में.
दानवीर राजा हरिश्चंद्र की कहानी
राजा हरीश्चंद्र के बारे में कहा जाता है कि, एक बार उन्होंने सपने में महर्षि विश्वामित्र को अपना सारा राज्य दान में देते हुए देखा. लेकिन अगले दिन जब वे सुबह जागे तो सपने को भूल गए थे. महर्षि विश्वामित्र महल में आए और राजा हरिश्चंद्र तो उनका सपना याद दिलाया. इसके बाद राजा ने खुशी-खुशी अपना राज्य उन्हें दान में दे दिया. लेकिन दान के बाद दक्षिणा की बारी आई तो वे बोले, पहले ही सब कुछ मैंने दान कर दिया अब अब दक्षिणा के लिए धन कहां से लाऊं.
बहुत विचार कने के बाद राजा हरिश्चंद्र ने खुद को बेचने का फैसला किया और काशी की ओर चल पड़े. इधर रानी तारामती और पुत्र रोहिताश्व को एक व्यक्ति ने खरीद लिया. उधर राजा हरिश्चंद्र को श्मशान के एक स्वामी ने खरीद लिया.
हरिश्चंद्र की पत्नी उस व्यक्ति के घर पर बर्तन मांजने और चौका-चूल्हा का काम करने लगी. वहीं कभी सिंहासन पर बैठने वाले राजा हरिश्चंद्र श्मशान का काम करने लगे.
एक दिन राजा के पुत्र रोहिताश्व को सांप ने डंस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई. लेकिन तारामती के पास कफन तक के पैसे नहीं थे. तारामती किसी तरह दुखी मन से पुत्र के शव को गोद में उठाकर शमशान पहुंची. लेकिन श्मशान पहुंचते ही हरिश्चंद्र तारामती से श्मशान का कर मांगने लगे.
क्योंकि श्मशाम का कर लेना नियम था और वो अपने मालिक की आज्ञा का पालन कर रहे थे. राजा हरिश्चंद्र पत्नी से बोले कि, श्मशान का कर तो देना ही पड़ेगा. फिर हरिश्चंद्र ने पत्नी से कहा कि यदि तुम्हारे पास कर देने के लिए धन नहीं है तो अपनी साड़ी का कुछ भाग फाड़कर दे दो. उसे ही कर के रूप में रख लूंगा.
लाचार होकर जैसे ही तारामती ने अपनी साड़ी फाड़ना शुरू किया उसी समय तेज गर्जन हुआ और विश्वामित्र प्रकट हो गए. विश्वामित्र बोले- हे राजा! तुम धन्य हो. ये सब तुम्हारी परीक्षा हो रही थी, जिसमें तुमने यह सिद्ध कर दिया कि तुम श्रेष्ठ, दानवीर, सत्यवादी और धार्मिक हो.
इसके बाद पुत्र रोहिताश्व भी जीवित हो उठा और राजा को उसका पूजा राज्य भी लौटा दिया गया. इतना ही नहीं महर्षि विश्वामित्र ने कहा कि, संसार में जब भी धर्म, दान और सत्य की बात की जाएगी, राजा हरिश्चंद्र का नाम आदर-सम्मान के साथ सबसे पहले लिया जाएगा.
ये भी पढ़ें: Daanveer: ये हैं हिंदू धर्म के महान दानवीर, किसी ने शीश तो किसी ने पूरा राज्य ही कर दिया दान
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![शिवाजी सरकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/5635d32963c9cc7c53a3f715fa284487.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)