Naag Panchami Katha: पौराणिक मान्यताओं में नागपंचमी की यूं तो कई कथाएं है. मगर महाभारत काल के दौरान की कथा बेहद रोचक और प्रमाणकि मानी गई है. इसके अनुसार महाभारत में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित हस्तिनापुर के राजा बने तो एक दिन वे शिकार के लिए वन में गए. यहां प्यास लगने पर वह पानी की तलाश में शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए. यहां देखा कि ऋषि आंखें बंद किए ध्यान लीन हैं.
प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित ने पानी मांगा तो ध्यान में होने से ऋषि जवाब नहीं दे सके. इस पर गुस्साए परीक्षित ने वहां पड़े एक मरे सांप को ऋषि के गले में डाल दिया. इस बीच शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी आश्रम पहुंचे तो ध्यान लीन पिता के गले में लटक रहे मरे सांप को देखा. उन्हें पता चला कि इसके पीछे राजा परीक्षित का हाथ है तो नाराज होकर श्रृंगी ने परीक्षित को श्राप दिया कि आज से ठीक सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से उनका मरना तय है.
बेटे ने लिया मौत का बदला लेने का संकल्प
श्रृंगी के श्राप के बाद दहशत में आए राजा परीक्षित खुद को सांपों से दूर रखने लगे मगर सातवें दिन फूलों की टोकरी में कीड़े के रूप में आए तक्षक ने परीक्षित को काट लिया. इससे उनकी मृत्यु हो गई. इसकी जानकारी राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय को लगी. पांडव वंश के आखिरी राजा जनमेजय ने तक्षक से पिता की मौत का बदला लेने की ठान ली.
लाखों सांपों की आहुती जनमेजय ने सर्प मेध यज्ञ अनुष्ठान किया. इसके कुंड में पृथ्वी के सारे सांप आकर गिरने लगे. एक विशिष्ट मंत्र के जरिए नाग खुद यज्ञ के पास पहुंच जाते थे. इस तरह यहां लाखों सांपों की आहुती दे दी गई. देखते ही देखते सर्प जाति ही खतरे में आ गई तो नागराज तक्षक सूर्यदेव के रथ से लिपट गए. इस कारण खुद सूर्यदेव का रथ हवन कुंड की तरफ बढ़ने लगा. तक्षक सूर्य देव हवन कुंड में समा जाते तो सृष्टि की गति थम जाती. ऐसे में देवताओं ने जनमेजय से प्रार्थना की कि वो यज्ञ बंद कर दें. जन्मेजय पिता की मौत का बदला लेने पर तुले थे मगर अस्तिक मुनि के हस्तक्षेप पर जनमेजय ने सांपों के महाविनाशक यज्ञ रोका. तब जाकर तक्षक नाग की जान बच पाई और इस तरह पृथ्वी पर सांपों का दोबारा जीवन बच रह सका.
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