(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Narad Jayanti 2023: नारद जयंती कब? विष्णु जी के परम भक्त ने क्यों दिया उन्हें ये कठोर श्राप, जानें रोचक बातें
Narad Jayanti 2023: नारद जयंती 6 मई 2023 को है. देवऋषि नारद मुनि को विष्णु जी का परम भक्त माना गया है. क्यों कहा जाता है इन्हें देवर्षि, नारद जयंती पर जानें देवर्षि नारद से जुड़ी रोचक बातें.
Narad Jayanti 2023: हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस साल नारद जयंती 6 मई 2023 को है. देवऋषि नारद मुनि को विष्णु जी का परम भक्त माना गया है. देवर्षि नारद मुनि तीनों लोकों पृथ्वी, आकाश और पाताल में यात्रा कर देवी-देवताओं और असुरों तक संदेश पहुंचाते थे, इन्हें संसार का पहला पत्रकार माना जाता है. नारद जी एक ऐसे पौराणिक चरित्र हैं, जो तत्वज्ञान में परिपूर्ण हैं. कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते हैं. आइए नारद जयंती पर जानें देवर्षि नारद से जुड़ी रोचक बातें.
क्यों कहते हैं नारद जी को देवर्षि ? (Devrishi Narad Interesting facts)
श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने नारदजी के लिए कहा है कि - देवर्षीणाम् च नारद:। यानी मैं देवर्षियों में नारद हूं. पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद जी ने देवताओं के साथ-साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया. यही वजह है कि सभी लोकों में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था. देवर्षि नारद ऋषि वेदव्यास, वाल्मीकि, शुकदेव के गुरु थे, राजा अम्बरीष, प्रह्लाद, ध्रुव, जैसे महान भक्तों को नारद जी ने ज्ञान और प्रेरणा देकर भक्ति मार्ग में चलने के लिए प्रेरित किया, यही कारण है कि नारद जी को देवर्षि का पद मिला.
कैसे हुआ नारद जी का प्राकट्य ? (Narad Ji Birth story)
नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है. शास्त्रों में उल्लेख के अनुसार 'नार' शब्द का अर्थ जल है. ये सबको ज्ञानदान, जलदान करने एवं तर्पण करने में निपुण होने की वजह से नारद कहलाए. ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार ये ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न हुए, इन्हें वेदांग, संगीत, श्रुति-स्मृति, व्याकरण, खगोल-भूगोल, इतिहास, पुराण, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में पारंगत माना जाता है. नारद मुनि को अजर-अमर माना गया है.
विष्णु जी को मानने वाले नारद ने आखिर क्यों दिया उन्हें श्राप
श्री नारायण के वरदान से नारद मुनि को वैकुण्ठ सहित तीनों लोकों में बिना किसी रोक-टोक के विचरण करने का वरदान प्राप्त था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अपने सबसे प्रिय विष्णु जी को ही उन्होंने श्राप दे दिया. रामायण के एक प्रसंग के अनुसार नारदजी को अहंकार आ गया था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है. श्रीहरि ने उनका अभिमान तोड़ने के लिए अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया, जिसमें एक सुंदर राजकन्या का स्वयंवर चल रहा था. उस स्वंयवर में नारद जी भी पहुंच गए और कन्या को देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठै. कन्या से शादी करने के लिए नारदजी ने विष्णु जी से सुंदर रूप मांगे.
श्रीराम को सहना पड़ा पत्नी वियोग
अपने भक्त नारद की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें बंदर का मुंह दे दिया और खुद स्वंयवर में पहुंचकर राजकुमारी को ब्याह कर ले गए. नारद जी न जैसे ही अपना मुंह पानी में देखा तो वह क्रोधित हो उठे और विष्णु को शाप दिया कि उन्हें भी पत्नी वियोग सहना पड़ेगा. कहते हैं त्रेतायुग में नारद जी के श्राप के कारण ही विष्णु के अवतार श्रीराम को माता सीता से वियोग सहना पड़ा था.
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