Narasimha Jayanti: भगवान विष्णु ने अंहकारी हिरण्यकश्यप को मारने के लिए लिया था नरसिंह अवतार
Narasimha Jayanti In 2020: भगवान विष्णु अपने भक्तों को संकट से बचाने के लिए नंगे पांव ही दौड़ पड़ते हैं. विपत्ति के समय भगवान विष्णु अपने भक्तों के साथ खड़े होते हैं. नरसिंह अवतार उनके इस रूप को प्रदर्शित करता है.
6 मई 2020 को नरसिंह जयंती है. पूरे देश में इस जंयती के मौके पर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार तब लेना पड़ा था जब राजा हिरण्यकश्यप का अंहकार चरम पर पहुंच गया था. उनके भक्त प्रहलाद पर उसके अत्याचार सभी सीमाओं को लांघते जा रहे थे.
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और वरदान मांगा कि ना उसे कोई मानव मार सके और ना ही कोई पशु. ना रात और न ही दिन में उसकी मृत्यु हो. उसे कोई भी ना घर के भीतर और ना बाहर मार सके. इतना ही नहीं उसने ये भी मांगा कि ना धरती पर और ना ही आकाश में, ना किसी अस्त्र से और किसी शस्त्र से उसकी मौत हो.
ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद उसे अंहकार हो गया. वह स्वयं को भगवान मानने लगा. अपनी प्रजा से उसने खुद को भगवान की तरह पूजने का आदेश दिया. उसने अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया. उसके अत्याचार से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि होने लगी. हिरण्यकश्यप का पुत्र था जिसका नाम प्रहलाद था. प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था. हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र द्वारा भगवान विष्णु की पूजा करना कतई पसंद नहीं था. समझाने के बाद भी प्रहलाद नहीं माने तो उसने प्रहलाद को मारने का प्रयास किया लेकिन हर बार वे बच जाते. इससे उसका क्रोध और बढ़ गया.
प्रहलाद ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि वे सही मार्ग पर चलें. भगवान विष्णु तो हर जगह मौजूद हैं. इस पर हिरण्यकश्यप ने कहा कि अगर भगवान सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में वो क्यों नहीं दिखते. इतना कहते ही उसने उस स्तंभ पर प्रहार किया. तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए. जो आधा मानव आधा शेर का रूप था. उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे राजमहल की दहलीज पर ले गए. भगवान नरसिंह ने उसे अपनी जांघों पर पटका और उसके सीने को नाखूनों से फाड़ दिया.
नरसिंह अवतार के रूप में जब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया, उस समय वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, ना दिन था और ना रात, भगवान नरसिंह ना पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु. नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को ना धरती पर मारा ना ही आकाश में बल्कि अपनी जांघों पर मारा. मारते हुए शस्त्र-अस्त्र नहीं बल्कि अपने नाखूनों का इस्तेमाल किया. इस दिन से ही नरसिंह जयंती मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई.
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