National Pumpkin Day 2023: कद्दू (Pumpkin) जिसे भारत में काशीफल, कुम्हड़ा, कोहड़, कोड़ू, पंपकीन, पेठा, भतवा, मखना आदि जैसे कई नामों से जाता है. स्थानीय भाषा के आधार पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. भारतीय व्यंजनों में भी इसका बहुत महत्व है.
कद्दू से ना सिर्फ कई तरह के स्वादिष्ट व्यजंन तैयार होते हैं, बल्कि सेहत के लिए भी यह बहुत लाभकारी व गुणकारी होता है. हिंदू धर्म में भी कद्दू से लेकर कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं. इन्हीं मान्यताओं और परंपराओं के कारण महिलाओं को कद्दू काटना वर्जित होता है.
हर साल 26 अक्टूबर को कद्दू दिवस मनाया जाता है. आइये जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है कद्दू दिवस और किन धार्मिक मान्यताओं के आधार पर महिलाएं नहीं काटती कद्दू.
कब और क्यों मनाते हैं कद्दू दिवस
कद्दू पीले और नारंगी रंग का होता है. इसके फल, फूल, बीज से लेकर पत्तियां सभी इस्तेमाल होते हैं और इससे तरह-तरह के व्यंजन तैयार होते हैं. इसमें कैरोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. कद्दू के बीज में आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम का अच्छा स्त्रोत होता है. कद्दू ना सिर्फ भारत बल्कि दुनियाभर में इस्तेमाल किया जाता है. कद्दू की इन्हीं विशेषताओं के कारण कद्दू दिवस मनाया जाता है. भारत में 26 अक्टूबर को राष्ट्रीय कद्दू दिवस (National Pumpkin Day) मनाया जाता है. वहीं अंतर्राष्ट्रीय कद्दू दिवस (World Pumpkin Day) 29 सितंबर को मनाया जाता है.
कद्दू की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं
हिंदू धर्म में महिलाएं कद्दू या कुम्हड़ा को नहीं काटती हैं. इसका कारण यह है कि, लोक मान्यताओं के अनुसार, इसे बड़ा या ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है. महिलाओं द्वारा कद्दू काटने को पुत्र बलि के समान माना गया है. इसके पीछे ऐसी पौराणिक मान्यता है कि, जहां पशुबलि नहीं दी जाती वहां कद्दू को ही पशु का प्रतीक मानकर बलि देने की परंपरा है.
हिंदू धर्म में कद्दू को सात्विक पूजा में बलि का प्रतिकात्मक रूप माना गया है. स्त्री जोकि सृजनहर्ता है ना कि संहारकर्ता. स्त्री मां है वह जन्म देती है. इन्हीं कारणों से हिंदू धर्म में स्त्री प्रतीकात्मक रूप से भी बलि नहीं देती है.
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