देवी अंबिका समस्त देवताओं के तेज से प्रगट हुईं. अमोध अस्त्र शस्त्रों से युद्ध कर महिषासुर का वध कर दिया. उनका रण इतना भीषण था कि महिषासुर की सेना के विध्वंस के कारण रणभूमि में खून की नदियां बह निकलीं.


श्री मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गासप्तशती के दूसरे अध्याय की कथा में वर्णित है कि पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ साल तक घोर संग्राम हुआ. एक पक्ष असुरों का स्वामी महिषासुर था और दूसरे पक्ष में देवताओं के नायक इंद्र थे. उस युद्ध में देवताओं की सेना महाबली असुरों से हार गई. सम्पूर्ण देवताओं को जीत कर महिषासुर इंद्र बन बैठा. तब पराजित देवतागण प्रजापिता ब्रह्मा की अगुवाई में भगवान विष्णु और शंकर से मिले.


देवताओं ने महिषासुर की विजय और उसके कृत्यों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि महिषासुर ने सूर्य, इंद्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरुण आदि देवताओं के अधिकार छीन कर स्वयं ही सबका अधिष्ठाता बन बैठा है. उसने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया है. अब देवता पृथ्वी पर साधारण मनुष्य की भांति विचरण करने को मजबूर हैं. हम आपकी शरण में हैं. उसके वध का कोई उपाय सोचिए.


तब भगवान विष्णु और शंकर महिषासुर पर क्रोधित हो गए. उनके क्रोध के बाद सभी देवताओं का तेज निकला और पुंजीभूत हो गया. उन सभी देवताओं का तेज एकत्र होकर नारी आकृति में बदल गया. सभी देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र उन्हें भेंट कर सम्मान किया. देवी ने बारंबार अट्टहासपूर्वक उच्च स्वर में गर्जना की. उनके भयंकर नाद से सम्पूर्ण आकाश कांप उठा. पृथ्वी डोलने लगी और समस्त पर्वत हिलने लगे.


क्रोध से भरी देवी के अट्टहास से असुर सेना उठ खड़ी हुई. महिषासुर ने युद्ध का आदेश दे दिया. सिंह वाहनी देवी और असुर सेना में युद्ध छिड़ गया. असुर सेना से युद्ध करती हुई देवी के निःश्वास से हजारों गण प्रकट हो गए और देवी की तरफ से युद्ध करने लगे. देवी अंबिका से महिषासुर भी महिष का रूप धर कर युद्ध करने लगा. वह मायवी था. जब वह भैंसे के रूप में युद्ध कर रहा था तब देवी उस पर चढ़ गईं. वह दैत्य के रूप में निकलने लगा तो देवी ने अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.