जब जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ा और पाप के बोझ से धरती थर्राने लगी तब तब देवी मां ने अलग अलग रूप धर पापी शक्तियों का निवाश किया और पृथ्वी और मनुष्य का उद्धार किया. ऐसा ही मां का एक रूप सती भी था. जो शिव की अर्धांगिनी बनीं और जन कल्याण किया. मां के इसी रूप के 51 शक्तिपीठ इस पृथ्वी पर मौजूद हैं. जिनकी अपार महिमा है. जिनके दर्शन मात्र से ही भक्तों की बिगड़ी संवर जाती है. लेकिन इन सभी 51 शक्तिपीठों की स्थापना आखिर हुई कैसे? कैसे हुआ इन दिव्य स्थलों का निर्माण? नवरात्रि के इस पावन पर्व पर इन्हीं शक्तिपीठों के निर्माण की कथा आपको हम बता रहे हैं.
कौन थी माता सती?
इन शक्तिपीठों के बारे में जानने से पहले हमें माता सती के बारे में जानना होगा. देवी सती प्रजापति दक्ष की पहली पत्नी प्रसूति के गर्भ से जन्मी थीं. जिनका विवाह शिव जी से हुआ. हालांकि उनके पिता राजा दक्ष इस विवाह के खिलाफ थे लेकिन पुत्री की ज़िद के कारण उन्हें उन दोनों का विवाह कराना पड़ा.
शक्तिपीठों के निर्माण की कथा
कहते हैं एक बार राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें देव लोक से सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन माता सती और भगवान शिव को इसमें आने का निमंत्रण नहीं भेजा गया. जब माता सती को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने भगवान शिव से इस यज्ञ में जाने की इच्छा जताई. भोलेनाथ ने उन्हें बहुत रोका लेकिन वो नहीं मानी और यज्ञ में पहुंच गई. जहां प्रजापति दक्ष ने उनके सामने भगवान शिव का घोर अपमान किया. पिता के मुख से पति के लिए निकले इन कटु वचनों को सती सह ना सकी और अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए.
सती के शरीर के हुए 51 टुकड़े
जब इस बात की जानकारी भगवान शिव को हुई तो वे क्रोधित हो गए। और शिव सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इसे देख सभी देवी-देवता चिंतित हुए और विष्णु जी से इसे रोकने की प्रार्थना की. विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जहां -जहां पर देवी सती के शरीर के टुकड़े और उनके आभूषण गिरे वहां वहां इन दिव्य शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है. जिनकी महिमा अपरमपार है. कलयुग में भी लोग इन शक्तिपीठों के दर्शन पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं और मां से मनवांछित फल पाते हैं.