Navratri 2020: पंचांग के अनुसार 17 अक्टूबर को है माता की चौकी और घटस्थापना, जानें शुभ मुहूर्त
Navratri 2020: 17 अक्टूबर से नवरात्रि का पर्व आरंभ हो रहा है. नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना कर मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं पंचांग के अनुसार घटस्थापना और पूजा का शुभ मुहूर्त
Navratri 2020 Ghatasthapana Muhurat: नवरात्रि का पर्व आज से आरंभ हो रहा है. नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा को समर्पित है. मां दुर्गा को शक्ति और ऊर्जा का कारक माना गया है. नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती है और सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
नवरात्रि की पूजा में नियम का विशेष महत्व बताया गया है. मां दुर्गा नियम और कठोर अनुशासन को मानने वाली देवी हैं. इसलिए मां दुर्गा की पूजा विधि पूर्वक करनी चाहिए. नवरात्रि के पर्व में प्रथम दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. प्रथम दिन की पूजा विधि पूर्वक करने मां का आर्शीवाद प्राप्त होता है. प्रथम दिन की पूजा विधि और नियम को जानना बहुत जरूरी है.
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त नवरात्रि के पर्व की शुरूआत घटस्थापना से मानी जाती है. इस दिन कलश स्थापित किया जाता है और मां की चौकी सजाई जाती है. पंचांग के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन यानि प्रतिपदा की तिथि को कलश स्थापित किया जाता है. इस कलश में भगवान गणेश जी का वास माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि बना घटस्थापना के नवरात्रि की पूजा सार्थक नहीं मानी जाती है. घटस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे उत्तम माना गया है.
पंचांग के अनुसार घटस्थापना का समय 17 अक्टूबर को घटस्थापना करने का समय प्रात: 06 बजकर 23 मिनट 22 सेकेंड से प्रात: 10 बजकर 11 मिनट 54 सेकेंड तक है.
घटस्थापना की विधि नवरात्रि के प्रथम दिन सूर्य निकलने से पहले विस्तार का त्याग कर देना चाहिए और स्नान करने के बाद कलश स्थापना की क्रिया आरंभ करनी चाहिए. जिस स्थान पर कलश को स्थापित करना है पहले उस स्थान को स्वच्छ कर लें. इसके बाद एक लाल रंग का वस्त्र बिछाएंं और माता रानी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. इसके बाद एक बर्तन में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें. इसके बीच में कलश रखें. कलश मौली से बांध दें और कलश के उपर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं. कलश में जल के साथ गंगाजल भरें दें और कुमकुम से तिलक करें. इसके बाद कलश में सुपारी, पुष्प, इत्र, पंच रत्न, सिक्का और पांचों प्रकार के पत्ते रखें. इसके बाद कलश का मुख बंद कर दें और अक्षत रखें. लाल रंग के कपड़े में एक नारियल को लपेटकर उसे रक्षासूत्र से बाँधकर इस पर रख दें. इसके बाद सभी देवी-देवताओं, पितरों का आह्वान करें और कलश की पूजा प्रारंभ करें. कलश स्थापना के साथ अखंड ज्योति जलाएं. यह पूरे नौ दिन तक जलती रहे इसका ध्यान रखें. घटस्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें.
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