नवरात्रि 2020: चैत्र नवरात्रि का पर्व आरंभ हो चुका है. देश भर में इस पर्व के अवसर मां दुर्गा के 9 स्वरुपों की पूजा नौ दिनों तक की जाती है. हर दिन अपना विशेष महत्व है. 25 मार्च से नवरात्रि शुभारंभ हो चुका है. मान्यता है कि नवरात्रि की पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर सदैव अपना आर्शीवाद बनाए रखती है. यही नहीं संकटों से भी उभारती हैं. मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं.
प्रथम दिन - मां शैलपुत्री
25 मार्च को नवरात्रि का पहला दिन था और पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. बैल इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल है.
दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी
26 मार्च को मां दुर्गा के दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल है. पौराणिक कथा के अनुसार मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. इस तपस्या के दौरान कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव और सभी देवताओं की प्रशंसा प्राप्त की.
तीसरा दिन मां चंद्रघण्टा
27 मार्च को नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है. इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंदंमा विराजमान है इसीलिये इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये खड्ग आदि विभिन्न अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं. ऐसा माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है.
चौथा दिन मां कूष्मांडा
28 मार्च को नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा जाता है. नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा और अर्चना की जाती है. माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी. इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है. इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार हैं. सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, कलश, बाण और कमल है.
नवरात्रि में दुर्गा आरती गाने से पूजा होती है सफल, यहां पढ़ें संपूर्ण आरती
पांचवा दिन मां स्कंदमाता
29 मार्च को नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है. स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है. स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है. बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है.इनकी सवारी सिंह है.
छठा दिन मां कात्यायिनी
30 मार्च को नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है. कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया, इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा. इनका रंग स्वर्ण की भांति अन्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में. बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है. इनका वाहन भी सिंह है.
सातवाँ दिन मां कालरात्रि
31 मार्च नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा और अर्चना का विधान है. इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है. बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है. इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है. इनके तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं जिनमें एक में खड्ग अर्थात् तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ में अभयमुद्रा है और चौथे हाथ में वरमुद्रा है. ये गर्दभ पर सवार हैं .
आठवाँ दिन मां महागौरी
1 अप्रैल नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है. इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात् सफेद है. इनके वस्त्र सफेद रंग के हैं और सभी आभूषण श्वेत हैं. इनका वाहन वृषभ अर्थात् बैल है और इनके चार हाथ है. इनका ऊपर वाला दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है. बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू है और नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है. ऐसा वर्णन मिलता है कि भगवान् शिव को पतिरूप में पाने के लिये इन्होंने हजारों सालों तक कठिन तपस्या की थी जिस कारण इनका रंग काला पड़ गया था लेकिन बाद में महादेव ने गंगा के जल से इनका वर्ण फिर से गौर कर दिया.
नौवाँ दिन मां सिद्धिदात्री
2 अप्रैल नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धदात्री की पूजा की जाएगी. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं मां सिद्धिदात्री। इनके चार हाथ हैं और ये कमल पुष्प पर विराजमान हैं। वैसे इनका वाहन भी सिंह ही है। इनके दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र है और ऊपर वाले हाथ में गदा है। बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है और ऊपर वाले हाथ में शंख है। प्राचीन शास्त्रों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व नामक आठ सिद्धियां बताई गई हैं। ये आठों सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से प्राप्त की जा सकती हैं। हनुमान चालीसा में भी ‘अष्टसिद्धि नव निधि के दाता’ कहा गया है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्तों की हर मुराद होती है पूरी, मां दुर्गा होती हैं प्रसन्न