आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है और आज मां दुर्गा के  ब्रह्मचारिणी स्वरूप की अराधना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों की सभी मनोकमानाएं पूरा करती हैं. एकाग्र मन से जो भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है उसे मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है.  


तप का आचरण करने वाली देवी हैं मां ब्रह्मचारिणी


मां ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ काफी गहरा है. दरअसल ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण से है, यानी ये देवी तप का आचरण करने वाली हैं. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में तप की माला एवं बांए हाथ में कमण्डल होता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम में वृद्धि होती है. इस देवी की अराधना करने से व्यक्ति का आत्मबल भी बढ़ता है जिसके वह अपने जीवन में आने वाले संकटों का डटकर सामना करता है और तनिक भी घबराता नहीं है.


मां ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि


सुबह उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नाना आदि करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल पर बैठ जाएं. मां दुर्गा के इस स्वरूप मां ब्रह्माचिरणी की पूजा करें. उन्हें अक्षत, फूल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें. मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान भी कराएं. मां को पिस्ते की मिठाई काफी पसंद है इसलिए इसी का भोग लगाएं. मां को पान, सुपारी, लौंग भी चढ़ाएं. इसके बाद मंत्रों का उच्चारण करें. हवनकुंड में हवन करें साथ ही इस मंत्र का जाप करते रहें- ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:।।


इसके बाद ही स्थापित कलश, नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता और ग्राम देवता की पूजा करनी चाहिए.


मां ब्रह्मचारिणी से जुड़ी कथा


पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने बहुत कठिन तपस्या की. इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया. मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. इसके बाद मां ने  कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं. टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं.


इससे भी जब भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया. मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई. इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया.


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