Navratri 2022 Siddha Kunjika Stotram: नवरात्रि में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती, राम रक्षा स्त्रोत का पाठ और मंत्र जाप करते हैं. एक ऐसा ही पाठ है सिद्ध कुंचिका स्तोत्रम. ये स्त्रोत दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati Path) के पाठ समान प्रभावशाली है.


समय का अभाव है तो नवरात्रि के नौ दिनों में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर देवी की उपासना की जा सकती है. इससे पूजा और व्रत का अक्षय पुण्य प्राप्त होगा. मां भगवती के इस पाठ को करने की विधि है उसका पालन जरूर करें. आइए जानते हैं सिद्ध कुंजिका पाठ की विधि और लाभ.


नवरात्रि में कैसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र: (Siddha Kunjika Stotram Path vidhi)



  • मां दुर्गा की पूजा-पाठ में शुद्धता का विशेष ध्यान रखें. सुबह-शाम जब भी आप ये पाठ करें तो स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें और फिर इसे शुरू करें. रात के समय ये पाठ ज्यादा फलदायी माना गया है.

  • इसके लिए मां दुर्गा के समक्ष घी का दीपक जलाएं. इसे देवी की तस्वीर के दाईं तरफ रखें. सरसों के तेल का दीपक है तो बाईं ओर रखें. पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें.

  • अगर किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए सिद्ध कुंजिका स्तोत्र कर रहे हैं तो हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर जितने पाठ एक दिन में कर सकते हैं उसका संकल्प लें. नवरात्रि के नौ दिनों तक इसका पालन करना होगा तभी ये पूर्ण फल प्रदान करेगा.

  • मनचाहा फल पाने के लिए ये पाठ कर रहे हैं तो ब्रह्मचर्य का पालन करें. देवी की पूजा में पवित्रता बहुत मायने रखती है.


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ (Siddha Kunjika Stotram Path Benefit)



  • सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में मां दुर्गा की नौ देवियां और दस महाविद्या का वर्णन है. इस पाठ के करने से अष्टसिद्धियां प्राप्त होती हैं.

  • इसके प्रभाव से जातक उच्चाटन, वशीकरण,  मारण, मोहन, स्तम्भन जैसी सिद्धि पाने में सफल होता है.

  • ग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं. धन लाभ, विद्या अर्जन, शत्रु पर विजय, नौकरी में पदोन्नति, अच्छी सेहत, कर्ज से मुक्ति, यश-बल में बढ़ोत्तरी की इच्छा पूर्ण होती है.


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र:


शिव उवाच


शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।


येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।


न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।


न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।


कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।


अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।


गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।


मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।


पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।


अथ मंत्र


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:


ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल


ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”


।।इति मंत्र:।।


नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।


नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।


 


नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।


जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।


 


ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।


क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।


 


चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।


विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।


 


धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।


क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।


 


हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।


भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।


 


अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं


धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।


 


पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।


सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।


 


इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।


अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।


 


यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।


न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।


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