Chaitra Navratri 2024: आदिशक्ति मां जगदंबा को ब्रह्मांड का रक्षक माना गया है. मान्यता है कि मां दुर्गा जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसके वारे न्यारे हो जाते हैं. यही वजह है कि नवरात्रि के दौरान देवी के भक्ति माता को खुश करने के लिए तरह-तरह के धार्मिक अनुष्ठान, उपाय, पूजा करते हैं. कहा जाता है कि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से नौ दुर्गा शीघ्र साधक की कामना पूरी करती है लेकिन ये पाठ काफी लंबा है, जिसे नियमानुसार करने पर समय लगता है.


ऐसे में अगर आप देवी की कृपा पाना चाहते हैं लेकिन समय की कमी है तो दुर्गा चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं. ये बेहद सरल और प्रभावशाली पाठ है. आइए जानते हैं नवरात्रि में दुर्गा चालीसा पाठ के लाभ, विधि.


किसने की दुर्गा चालीसा की रचना ?


दुर्गा चालीसा की रचना देवी-दास जी ने की थी, माना जाता है कि वह मां दुर्गा के सबसे बड़े उपासक थे और उन्होनें दुर्गा चालीसा में मां दुर्गा के सभी रूपों के साथ ही उनकी महिमा का भी वर्णन विस्तार में किया है. देवी दुर्गा को इस संसार का संचालक भी माना जाता है क्योंकि उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के गुण विद्यमान हैं.


दुर्गा चालीसा पाठ के लाभ (Durga Chalisa Path Benefit)



  • दुर्गा चालीसा का पाठ में 9 दुर्गा की महीमा बताई गई है. ऐसे में नवरात्रि के दौरान इस पाठ को करने से व्यक्ति को 9 देवियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जीवन में बुरी शक्तियों से निजात मिलती है, साथ ही परिवार पर कोई संकट नहीं आता.

  • दुर्गा चालीसा मानसिक शांति प्रदान करता है, इसके फलस्वरूप व्यक्ति आध्यात्म की ओर अग्रसर होता है.तनाव से मुक्ति मिलती है.

  • जो व्यक्ति नवरात्रि में इसका पाठ करता है वो अपना खोया हुआ सम्मान और संपत्ति भी प्राप्त कर सकता है.

  • दुर्गा चालीसा पाठ से अपने शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त का वरदान मिलता है.


दुर्गा चालीसा पाठ विधि (Durga Chalisa Path vidhi)


नवरात्रि में रोजाना सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें और जहां घटस्थापना की है या फिर देवी माता की तस्वीर के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें और फिर आसन पर बैठकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें.


दुर्गा चालीसा पाठ (Durga Chalisa Path)


नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥


निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥


शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥


रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥


अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥


प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥


शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥


धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥


रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥


लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥


हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥


मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥


श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥


कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥


सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥


नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥


महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥


रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥


परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥


ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥


प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥


ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥


शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥


निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥


शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥


भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥


मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥


आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥


करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।


जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥


श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥


॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥


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