नौ दिनों तक मनाए जाने वाले नवरात्रि पर्व का पारण अष्टमी या नवमी के दिन किया जाता है. यानि अष्टमी या नवमी किसी भी दिन इस व्रत का उद्यापन कर मां से कृपा प्राप्त की जा सकती है. नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व हैं क्योंकि माना जाता है कि बाल कन्याओं में माता रानी का ही वास होता है. और उनकी पूजा से मां प्रसन्न होकर भक्तों का कल्याण करती हैं. नवरात्रि में कुछ लोग अष्टमी के दिन व्रत का पारण करते हैं तो कुछ नवमी पूजन के बाद ही व्रत खोलते हैं. वहीं इस बार लोगों में अष्टमी व नवनी को लेकर असमंजस की स्थिति हैं. 


कब है अष्टमी


इस बार अष्टमी शुक्रवार यानि कि 23 अक्टूबर को दोपहर से शुरु हो जाएगी. दोपहर 12.09 बजे से अष्टमी शुरु होकर अगले दिन शनिवार को सुबह 11.27 बजे तक रहेगी. इस लिहाज़ से महाष्टमी का व्रत 24 अक्टूबर को होगा. अगर आप अष्टमी पूजते हैं तो 24 अक्टूबर को कन्या पूजन कर सकते हैं. 


25 अक्टूबर को है महानवमी


वहीं महानवमी 24 अक्टूबर से 11.28 बजे से शुरु होकर 25 अक्टूबर को सुबह 11.14 बजे तक रहेगी. इसीलिए नवमी पर कन्या पूजन रविवार को करना उचित होगा. वहीं चूंकि रविवार सुबह 11. 15 बजे से दशमी की तिथि प्रारंभ हो जाएगी, इसीलिए दशहरा 25 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा. 


कन्या पूजन की विधि


सप्तमी, अष्टमी व नवमी के दिन कन्या पूजन का खास महत्व होता है. इसकी भी एक खास विधि है - 




  • नवरात्रि में जब भी कन्या पूजन हो और बाल कन्याएं घर पर आएं तो सबसे पहले उनके पैर धुलवाएं

  • उन्हें स्वच्छ आसन पर बैठाएं. 

  • हाथों पर मौली बांधे, माथे पर टीका लगाएं

  • हलवा, पूरी और चने का भोग बाल कन्याओं को लगाएं

  • कन्याओं को लाल चुनरी उठाएं, चूड़ियां भेंट करें

  • फल भी दें और भोग के बाद दक्षिणा स्वरूप कुछ पैसे दें.

  • जानें से पहले उनसे आशीर्वाद ज़रुर लें. 


इस विधि से कन्या पूजन करेंगे तो मां का आशीर्वाद अवश्य ही प्राप्त होगा.