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Nirjala Ekadashi 2023: निर्जला एकादशी का व्रत कब? सबसे कठिन व्रतों में से एक है ये व्रत, जानें इसका महत्व
Nirjala Ekadashi 2023: सभी एकादशी में सबसे सर्वश्रेष्ठ है निर्जला एकादशी. अगर आप पूरे साल की एकादशी पर व्रत नहीं रख पाते तो इस एक एकादशी पर व्रत रख कर सभी एकादशी के संपूर्ण फल को प्राप्त कर सकते हैं.
Nirjala Ekadashi 2023: एक साल में कुल 24 एकादशी होती है. लेकिन जिस वर्ष अधिक मास लग जाता है उस साल 26 एकादशी हो जाती है. इन सभी एकादशी में सबसे प्रमुख होती है 'निर्जला एकादशी'. निर्जला एकादशी पर व्रत करने का महत्व बहुत ज्यादा होता है.
निर्जाला एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जो एक कठिन व्रत है.यह एक तरह से तपस्या व्रत है. निर्जाला एकादशी का व्रत पूरे 24 घंटों तक चलता है. इस व्रत के दौरान खाने-पीने बिलकुल मना होता है. इस पूरे व्रत के दौरान चाहे कितनी ही प्यास क्यों न लगे, जल की एक बूंद तक भी ग्रहण नहीं कर सकते. साल 2023 में निर्जाला एकादशी का व्रत 31 मई 2023, बुधवार के दिन पड़ेगा. निर्जाला एकादशी का ये व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तिथि पर पड़ेगा. इस दिन सूर्योदय से 5.59 तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी है तो 13.49 तक भद्रा भी रहेगी.
भद्रा काल होने से चिंता की बात नहीं है. क्योंकि भद्रा जिस समय जिस लोक में होती है, उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है. पृथ्वी लोक में भद्रा होने पर पृथ्वी पर मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. भद्रा का वास स्वर्गलोक, पाताल लोक में होने पर यह पृथ्वीवासियों के लिए शुभ रहती है. भद्रा काल होने की वजह से इस दिन एकादशी के व्रत प्रभाव के कारण कोई अशुभता नहीं होगी.
निर्जला एकादशी का महत्व
- निर्जला व्रत के दिन व्रती को पूरी निष्ठा, भाव, समर्पणता, विश्वास के प्रति द्रढ़ रहें.
- साल में पड़ने वाली बाकि एकादशी में आप फलाहार ले सकते हैं लेकिन ज्येष्ठ माह की इस निर्जला एकादशी के व्रत में फल तो क्या ,आप पानी की एक बूंद तक पीना मना है.
- यह एकादशी भरपूर गर्मी के बीच पड़ती है जिसमें व्रती इस व्रत को कष्ट और तपस्या के साथ रखते हैं.
- बाकि निर्जला एकादशी का महत्व सभी एकादशियों में सर्वापरि है.
- निर्एजला एकादशी व्रत को रखने से आयु, आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है.
महाभारतकाल में भीम ने कठिन होने के बावजूद जैसे-तैसे इस निर्जल व्रत को किया था. तभी से इसे ‘भीमसेनी एकादशी‘ भी कहा जाता है. व्रत की अवधि में एक बूंद जल भी ग्रहण कर लिया तो यह व्रत भंग हो जाता है. इस एकादशी को दिन-रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रातः स्नान करना चाहिये तथा सामर्थय के अनुसार सुवर्ण, जलयुक्त कलश का दान करना चाहिये. इसके अनन्तर व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिये. इस बार एकादशी के दिन गायत्री जयंती तथा हस्त नक्षत्र भी है.
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Disclaimer : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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