Janmashtami: भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को जन्माष्टमी मनाई जाती है. इस बार यह 11-12 अगस्त को मनाई जाएगी. इस दिन घर-घर में कान्हा विराजते हैं और नए कपड़े, बांसुरी, मुकुट और मोरपंख से उनका भव्य श्रृंगार होता है. मगर भोग के लिए कुछ चुनिंदा प्रसाद ही प्रयोग किए जाने चाहिए. जन्माष्टमी के दिन प्रभु को उनके सबसे प्रिय माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है. यह कान्हा जी को बहुत प्रिय थी.
कुछ जगहों पर बड़े पंडालों में आयोजित होने वाले जन्मोत्सव कार्यक्रम में बाल गोपाल को 56 चीजों का भोग लगता है, लेकिन घरों में कम से कम पांच चीजों को भोग के लिए पूजा में रखना अनिवार्य बताया गया है. इनका प्रसाद भी श्रद्धालुओं के बीच बांटना लाभकारी और पुण्य का काम है.
माखन मिश्री: श्रीकृष्णजी को गोकुल में रहते हुए ही माखन सबसे प्रिय था. मां यशोदा उन्हें मिश्री मिलाकर इसे खिलाती थीं. जिससे वह भाव विभोर हो उठते थे. बाल रूप में वह इन्हें चुराकर खाते थे.
पंचामृत: कान्हा की पूजा में पंचामृत जरूरी है. इसके बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है. पंचामृत में पांच चीजें घी, दूध, दही, तुलसी पत्र, गंगाजल और शहद शामिल होता है.
गोला-मखाना पाक: जन्माष्टमी में अधिकांश घरों में मखाना पाक बनाया जाता है. यह ऐसा पकवान होता है, जिसमें खूब सारे मेवे डालकर उसे चाश्नी में जमाया जाता है.
पंजीरी: जन्माष्टमी पर पंजीरी या चरणामृत भी बहुत जरूरी बताए गए हैं. पंजीरी आटे को भूनकर उसमें मीठा मिलाकर बनता है तो चरणामृत दही-दूध और मेवे को मिलाकर शीतल द्रव होता है. यही कान्हा का प्रमुख प्रसाद है.
खीरा: कृष्ण की पूजा में खीरा रखना भी बहुत जरूरी होता है. कई जगह कृष्ण जन्म को खीरे के प्रतीक के तौर पर दिखाया जाता है, जिसके चलते पूजा में इसका खास महत्व है.
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