पुरातन काल में हम सब मनुष्य पहले अन्य पशुओं की भांति चार पैर से चलते थे. इससे मनुष्य को निश्चित शिकार और कार्य विस्तार में परेशानी होती थी. मनुष्य ने कमजोरी को ताकत बनाया और दो पैरों पर खड़ा होना शुरू कर दिया. क्योंकि चार पैरों से तेज नहीं चल सकता था. उन्नत कार्य नहीं कर सकता था. अन्य पशु चार पैरों की चाल मे उससे कहीं अधित तेज और प्रभावी थे.
इसी प्रकार शेर का उदाहरण लें तो वह ऐसा मांस खा ही नहीं पाता जिसमें में हड्डी का अंशमात्र भी हो. साथ ही उसका जबड़ा इस प्रकार है कि वह अन्य पशु पक्षियों की तरह नोंचकर भी नहीं खा सकता है. इस कमजोरी से पार पाने के लिए उसे दैहिक रूप से सबल होना पड़ा.
अक्सर जीवन में कुछ लोग बहुत बुद्धिान नहीं होते हैं. उन्हें इस बात का ऐहसास रहता है. कई गुना मेहनत कर इस कमजोरी के बदले लगनशीलता की ताकत से उठ खड़े होते हैं. अपनी निरंतरता से बड़े पदों को शोभित करते हैं. इसके विपरीत आप ऐसे लोगों को भी देखते हैं जो बुद्धिशाली होकर भी सीमित रह जाते हैं.
आशय यह है कि कमजोरियों पर फोकस करने से अच्छा है. अपनी ताकत और मनोबल पर भरोसा कर सफलता का रास्ता स्वयं तैयार किया जाए. मनुष्य अनोखा प्राणी है. प्रत्येक मनुष्य की सफलता का तरीखा भी अनोखा होता है. कमतर से बेहतर की यात्रा ही व्यक्ति को महान बनाती है. समाज के विभिन्न आदर्शाें के जीवन को पढ़ जान कर इस बात को सरलता से समझा जा सकता है कि उन्होंने अपने उूपर नियंत्रण अनुशासन रखा. संकल्पशक्ति से साधारण जीवन को लाखांे लोगों के लिए असाधारण और आदर्श स्थापित करने वाला बना दिया.