History: लाहौर का नाम कैसे पड़ा, भगवान राम के पुत्र लव से क्या है इसका कनेक्शन?
Lahore City History: पाकिस्तान के लाहौर शहर से भगवान राम के बेटे लव का गहरा नाता है. कहा जाता है कि भगवान राम के बेटे ने ही इस शहर को बसाया. यहां आज भी लव के नाम का एक मंदिर है.
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Lahore City History Connection With Luv: हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, पाकिस्तान के लाहौर शहर का प्राचीन नाम लवपुरी या लवपुर था. इस शहर को भगवान राम के पुत्र लव ने बसाया था. साथ ही यह भी कहा जाता है कि लाहौर के पास स्थित कुसून नगर को कुश द्वारा बसाया गया था. बता दें कि, भगवान राम और माता सीता के दो पुत्र थे, जिनका लव और कुश था.
आजादी के पहले पाकिस्तान का शहर लाहौर पंजाब प्रांत में आता था. लेकिन 1947 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ तो यह शहर पाकिस्तान की सीमा में चला गया. इस तरह से कई भारतीयों का लाहौर से गहरा नाता है. आज भी ऐसे कई लोग हैं, जिनके पूर्वजों का जन्म इसी शहर में हुआ या वो इसी शहर में रहें.
पाकिस्तान का दिल है लाहौर
लाहौर शहर को पाकिस्तान का दिल कहा जाता है. पाकिस्तान में कराची के बाद लाहौर ही ऐसा शहर है जिसमें सबसे अधिक आबादी है. लाहौर के इतिहास से लेकर संस्कृति, रूपरेखा, ऐतिहासिक इमारतें, शिक्षा प्रणाली सभी बहुत समृद्ध है.
भगवान राम के बेटे लव ने बसाया पाकिस्तान का यह शहर
इतिहास के पहले की बात करें तो, हिंदू धर्म के अनुसार, पाकिस्तान के लाहौर शहर की स्थापना भगवान राम के बेटे लव ने की थी. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने वानप्रस्थ जाने का निर्णय किया तब उन्होंने अपने बेटे लव और कुश को अपना राजकाज सौंप दिया. कुश को उन्होंने दक्षिण कोसल और अयोध्या राज सौंपा. लव को पंजाब दिया गया, जिसे लव ने लवपुरी बनाया, जोकि आज लाहौर के नाम से जाना जाता है. हालांकि वाल्मीकि रामायण में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता है.
लाहौर में है लव के नाम का मंदिर
पाकिस्तान के लाहौर किले में लव के नाम का एक मंदिर भी है. कहा जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण उस वक्त हुआ था, जब पंजाब में सिखों का साम्राज्य हुआ करता था. हालांकि अब यह मंदिर विरान पड़ा है.
हिंदू के साथ ही लाहौर सिख, पठान, मुगल और आर्य समाज की मिली-जुली संस्कृति का गढ़ रहा है. इसी शहर से संस्कृत ग्रंथ प्रकाशित हुआ और इस भाषा का प्रचार-प्रसार किया गया. संस्कृत और भारत विद्या के प्रसिद्ध प्रकाशन मोतीलाल बनारसी दास की स्थापना भी इसी शहर में हुई.
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