(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Panchajanya Shankh: भगवान विष्णु के शंख का क्या नाम था, इसकी विशेषताएं जान रह जाएंगे हैरान
Panchajanya Shankh: भगवान विष्णु के हाथ का शंख अति विशेष और दु्र्लभ है.इसके पीछे का रहस्य, पौराणिक कथाएं और विशेषाएं आपको चौंका देंगी. आइए जानते हैं.
Panchajanya Shankh: सनातन धर्म में शंख का विशेष महत्व है. कहते हैं कि शंख बजाने से वातावरण शुद्ध होता है जहां तक शंख की आवाज जाती है वहां तक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. शंख विजय, शांति, समृद्धि और माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है. वेद पुराणों में भी शंख का जिक्र बताया गया है.
जब विष्णु जी ने कृष्ण अवतार लिया था तो महाभारत में भी पांचजन्य शंख का प्रयोग किया गया था. शंख मुख्य रूप से तीन तरह के पाए जाते हैं. दक्षिणावृति शंख, मध्यावृति और वामावृति शंख. इन सब में सबसे ज्यादा महत्व रखने वाला शंख है भगवान विष्णु का पांचजन्य शंख. आइए जानते हैं इस शंख की विशेषता के बारे में-
पांचजन्य शंख का पौराणिक वर्णन
महाभारत के अनुसार इस शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी. एक पौराणिक कथा के अनुसार एक दैत्य ने भगवान कृष्ण के गुरू पुत्र पुनरदत्त का अपहरण कर लिया था. जब ये बात भगवान श्री कृष्ण को पता चली तो वो उसे बचाने दैत्य नगरी चल पड़े वहां जाकर उन्होंने देखा कि दैत्य शंख के भीतर सो रहा है.
कृष्ण ने दैत्य को मारकर शंख अपने पास रख लिया लेकिन उन्हें पता चला कि पुनरदत्त यमलोक जा चुका है, श्रीकृष्ण भी उस तरफ चल पड़े लेकिन यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया. जिसके बाद श्री कृष्ण ने शंखनाद किया जिससे कि पूरा यमलोक कांप उठा. जिसके बाद पुनरदत्त की आत्मा को स्वयं यमराज ने कृष्ण को लौटा दिया. शंख और पुनरदत्त को लेकर कृष्ण अपने गुरू के पास पहुंचे. शंख को श्री कृष्ण के हाथ में देते हुए उनके गुरू ने कहा कि ये शंख तुम्हारे लिए ही बना है.
कौरवों की सेना में भय पैदा कर देती थी ये ध्वनि
बताया जाता है कि पांचजन्य शंख की नाद से कौरवों में भय का माहौल पैदा हो जाता था. जब कृष्ण इस शंख का नाद करते थे तो कई किलोमीटर तक इसकी ध्वनि जाती थी. पौराणिक कथाओं की मानें तो इस शंख की ध्वनि का नाद सिंह के दहाड़ से भी ज्यादा होता था.
पांचजन्य शंख की विशेषताएं
- समुद्र मंथन में जिन 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी, पांचजन्य शंख उनमें छठा रत्न था.
- इसको शंख को यश और विजय का प्रतीक माना जाता है.इसकी आकृति ऐसी होती है जिसमें पांचों अंगुली समा सकें.
- इस शंख को घर में रखने से वास्तु दोष दूर होता है.
- समुद्र मंथन में जिन 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी, पांचजन्य शंख उनमें छठा रत्न था.
- इस शंख से शंखनाद करके श्री कृष्ण ने पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया था.
- माता लक्ष्मी को अति प्रिय है ये शंख. अत: इसे घर में जगह देने से अन्न -धन की कभी कमी नहीं होती.
ये भी पढें. - Sawan 2023: भगवान शिव को गलती से भी ना चढ़ाएं इस तरह के बेलपत्र, जान लें इससे जुड़े नियम
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.