Lalita Saptami: ललिता सप्तमी का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. ललिता का पूरा नाम ललिता देवी था. जो राधा और भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय गोपी में से एक थीं. इस दिन को गोपिका ललिता जंयती भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा के साथ ललिता की पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है. ललिता देवी की पूजा करने से श्रीकृष्ण और राधारानी का विशेष आर्शीवाद प्राप्त होता है तथा जीवन में आनंद और प्रसन्नता में वृद्धि होती है.
कौन थीं ललिता देवी
ललिता देवी राधा की सबसे विशेष और प्रिय सहेलियों में से एक थीं. ललिता देवी राधा का पूर्ण ध्यान रखा करती थीं. ललिता को ललिता सखी नाम से भी जाना जाता है. ललिता देवी का संबंध मथुरा के ऊंचागांव से था. संपूर्ण ब्रजमंडल में ललिता देवी के प्रेम और आस्था की कथाएं सुनाईं जाती हैं. ललिता देवी को प्रेम की बहुत ही गहरी समझ थी, इसीलिए वे राधा- कृष्ण के सबसे करीब थीं. पौराणिक कथाओं के अनुसार ललिता देवी हर कला में निपुण थीं वे राधा जी के साथ खेला करती थीं. वे राधा जी को नौका विहार भी कराया करती थीं. ललिता देवी राधा का पूरा ध्यान रखती थीं.
ललिता सप्तमी का महत्व
ललिता सप्तमी का पर्व मथुरा में बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व प्रेम के महत्व को बताने वाला पर्व है. माना जाता है कि इस दिन जो भी ललिता देवी की पूजा करता है उन पर पर राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण का विशेष आर्शीवाद जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने में सहायक होता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
25 अगस्त सप्तमी तिथि दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगी. इसके बाद अष्टमी की तिथि आरंभ हो जाएगी. अष्टमी की तिथि को राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है.