(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Padmini Ekadashi 2020: अधिक मास में जानें कब है पद्मिनी एकादशी का व्रत
Padmini Ekadashi 2020 Date and Muhurat: अधिक मास में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. अधिक मास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. पद्मिनी एकादशी का व्रत कब है आइए जानते हैं.
Padmini Ekadashi Vrat Puja Vidh: पंचांग के अनुसार इस समय अधिक मास चल रहा है. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी की तिथि को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और अधिक मास भगवान विष्णु को समर्पित है. इसीलिए इस एकादशी का महत्व बढ़ जाता है.
सभी व्रतों में श्रेष्ठ है एकादशी का व्रत पौराणिक कथाओं के अनुसार एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. महाभारत की कथा में भी एकादशी व्रत का वर्णन आता है. भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर और अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताया था. एकादशी का व्रत मोझ प्रदान करता है और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है. एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाओं को भी पूर्ण करता है.
कब है पद्मिनी एकादशी का व्रत पंचांग के अनुसार 27 सितंबर 2020 को पद्मिनी एकादशी का व्रत है. इस एकादशी को बहुत ही विशेष माना गया है. इसलिए इस व्रत को विधि पूर्वक ही करना चाहिए तभी भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है.
पद्मिनी एकादशी पूजा और व्रत विधि एकादशी की तिथि का आरंभ होते है इस व्रत का आरंभ हो जाता है. एकादशी की तिथि के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा आरंभ करनी चाहिए. इस व्रत को निर्जल व्रत भी कहा जाता है. निर्जल व्रत रखकर इस दिन विष्णु पुराण पाठ करना चाहिए. रात्रि में जागरण करें. इस व्रत में सभी प्रहरों में पूजा का विधान बताया गया है. इसीलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है. पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी की तिथि में करें. इस व्रत का पारण भी विधि पूर्वक करना चाहिए तभी इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है. व्रत समाप्त करने के बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए.
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में एक राजा थे जिनका नाम कीतृवीर्य था. उनकी कई रानियां थीं लेकिन किसी को कोई पुत्र नहीं था. जिस कारण राजा और उनकी समस्त रानियां दुखी और परेशानी रहती थीं. राजा को किसी ने सलाह दी कि वे अपनी रानियों के साथ संतान प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करें. राजा ने इस सलाह को मानते हुए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की. कठोर तपस्या के कारण राजा का शरीर कमजोर हो गया. राजा कंकाल की तरह दिखाए देना लगा. कठोर तपस्या के बाद भी राजा को फल प्राप्त नहीं हुआ, तब एक रानी ने देवी अनुसूया से इसका उपाय पूछा. तब देवी ने रानी को पुरुषोत्तम मास यानि अधिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा. व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान दिया. कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन कहलाया. यह बालक आगे चलकर अत्यंत पराक्रमी राजा बना. कीतृवीर्य ने एक बार रावण को भी बंदी बना लिया था.
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