Vaman Ekadashi 2020: पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु करवट बदलते हैं. इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. परिवर्तिनी एकादशी को वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.


वामन अवतार की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में असुरों का राजा बलि धर्म-कर्म में विशेष रूचि रखता था और भगवान विष्णु का परम भक्त था. बलि धर्म का पालन करने वाला राजा था. राजा बलि के बारे में यह बात चारों दिशाओं में फैल गई कि राजा बलि के दरबार से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता है. असुर राज बलि के बढ़ते प्रताप से देवराज इंद्र को अपने सिंहासन की चिंता सताने लगी. क्योंकि इंद्र को भय था कि कहीं बलि के राजा बनते ही स्वर्ग पर असुरों का अधिकार न हो जाए. देवराज इंद्र के साथ सभी देवताओं ने इस चिंता को भगवान विष्णु के सम्मुख व्यक्त किया.


वामन अवतार लेकर दो पग में नाप दिए दोनों लोक

देवताओं की चिंता को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के राज्य में पहुंच गए. वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु राजा बलि के दरबार में पहुंचे. जहां उन्होने राजा बलि से वचन लेते हुए कहा कि वह वामन देव को तीन पग भूमि दान करेंगे. राजा बलि ने भगवान को दान देने का वचन दे दिया.


राजा बलि की पुत्री रत्नमाला ही थी पूतना

पूतना पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी जो एक राजकन्या थी. पिछले जन्म में पूतना का नाम रत्नमाला था. राजा बलि के यहां जब वामन भगवान पाधरे तो भगवान वामन की सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नमाला के मन में ममत्व जाग उठा. भगवान वामन को देखकर वह मन ही मन सोचने लगी कि मेरा भी ऐसा ही पुत्र हो ताकि वह उसे हृदय से लगाकर दुग्धपान कराती बहुत दुलार करती. भगवान ने उसकी मन की इच्छा को जान लिया और तथास्तु कहा. लेकिन इसके बाद भगवान ने राजा बलि का अहंकार दूर करने के लिए तीन पग में भूमि नाप दी. राजा समझ गए और अपनी गलती का उन्हे अहसास हो गया. राजा ने वामनदेव से क्षमा मांगी. लेकिन इस घटना को रत्नमाला दूर से देख रही थीं. रत्नमाला को प्रतीत हुआ कि उसके पिता का घोर अपमान हुआ है. इससे वह बुरी तरह से क्रोधिध हो उठी. उसने मन ही मन भगवान को बुरा कहना आरंभ कर दिया उसने कहा कि अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती. भगवान ने उसके इस भाव को भी जानकर तथास्तु कह दिया.


पूतना वध की कथा

अगले जन्म में भगवान द्वारा तथास्तु कहने के कारण ही पूतना राक्षसी बनी और मथुरा में कंस की दासी बनी. कंस ने पूतना को श्रीकृष्ण को मारने के लिए गोकुल जाने का आदेश दिया. पूतना गोकूल पहुंच गई. पूतना भेष बदलने में भी माहिर थी. पूतना ने सुंदर स्त्री का भेष धारण किया और भगवान कृष्ण को दुग्धपान करने लगी, भगवान श्रीकृष्ण ने रत्नमाला को पूतना के रूप में पहचान लिया और उसका वध कर दिया. इस प्रकार से श्रीकृष्ण के हाथों पूतना को वध हुआ और जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर दिया. वहीं पूतना की दुग्ध और विष पिलाने की इच्छा को भी पूर्ण किया.


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