Adhik Maas Ki Kahani: हिंदू धर्म में अधिक मास का विशेष महत्व बताया गया है. अधिक मास में धर्म कर्म से जुड़े कार्य करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता है कि अधिक मास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. अधिक मास को मलमास, पुरुषोत्तम भी कहा जाता है.
अधिक मास की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार अधिक मास को लोग मलमास कहने लगे. मलमास कहने से वे नाराज हो गए और अपनी पीड़ा को भगवान विष्णु के सम्मुख रखा. अधिकमास का कोई स्वामी नहीं होता है. स्वामी न होने से अधिक मास को मलमास कहा जाने लगा. इससे वे बहुत दुखी हुए. जब अधिक मास ने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को सुनाई तो उन्होने मलमास को वरदान दिया कि अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं. वरदान देने के साथ साथ भगवान विष्णु ने अधिक मास को अपना नाम भी दिया. पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही नाम है इसीलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. भगवान विष्णु ने कहा जो भी व्यक्ति अधिक मास में मेरी पूजा, उपासना और आराधना करेगा उसे वे प्रसन्न होकर अपना आर्शीवाद प्रदान करेंगे और सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करेंगे.
अधिक मास का महत्व
अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता कि पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान और दान करने से विशेष फल प्राप्त होेते हैं और हर प्रकार के कष्ट दूर होते हैं.
अधिक मास में इन बातों का रखें ध्यान
अधिक मास में कुछ कार्यों को निषेध माना गया है. मान्यता कि अधिक मास में नई चीज की खरीदार कर घर में नहीं लाना चाहिए. ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है, इसीलिए पुरुषोत्तम मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इस महीने वस्त्र आभूषण, घर, दुकान, वाहन आदि की खरीदारी नहीं की जाती है. शादी विवाह भी अधिक मास में नहीं करते हैं वहीं किसी प्रकार के मांगलिक कार्यों भी नहीं करने चाहिए.
अधिक मास कब से शुरू होगा
पंचांग के अनुसार आश्विन मास में श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर 2020 को समाप्त हो रहे हैं और अधिक मास 18 सितंबर से शुरु हो रहा है. अधिक मास का समापन 16 अक्टूबर 2020 को होगा.
अधिक मास में बन रहा है विशेष संयोग
अधिक मास में इस बार विशेष संयोग भी बना रहा है. यह विशेष संयोग 160 साल बाद बन रहा है. इसके बाद 2039 में भी ऐसा संयोग बनेगा. इस साल संयोग के चलते ही लीप ईयर और आश्विन अधिक मास दोनों एक साथ पड़ रहे हैं. सौर वर्ष सूर्य की गति पर निर्भर करता है. चंद्र वर्ष की गणना चंद्रमा की चाल की जाती है. एक सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे होते हैं. जबकि एक चंद्र वर्ष में 354.36 दिन होते हैं. हर तीन साल बाद चंद्रमा के ये दिन एक माह के बराबर हो जाते हैं. ज्योतिष गणना को सही बनाए रखने के लिए ही तीन साल बाद चंद्रमास में एक अतिरिक्त माह जोड़ दिया जाता है. इसे ही अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है.