Sawan 2021 : निष्कलंक महादेव मंदिर में ध्वजा और गाय के सफेद रंग में बदलते ही पाप मुक्त हो गए थे पांडव
महाभारत युद्ध में अपनों की हत्या के महापाप से छुटकारा पाने को पांडव श्रीकृष्ण के पास गए, जहां श्रीकृष्ण ने उन्हें एक काली ध्वजा और काली गाय सौंपकर पाप मुक्त होने के उपाय बताए.
Sawan 2021 : निष्कलंक महादेव मंदिर यानी वह मंदिर है, जहां पांडवों को महाभारत युद्ध में अपनों की हत्या के महापाप से मुक्ति मिली. इससे प्रसन्न होकर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर शिव अर्चना की, तब से यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केद्र बन गया.
गुजरात के भावनगर में कोल्याक तट से अरब सागर में करीब तीन किमी अंदर बने इस मंदिर में शिवलिंगों का रोज सागर की लहरें अभिषेक करती हैं. यहां आने के लिए पैदल ही रास्ता है, लेकिन उसके लिए भी लहरों के शांत होने का इंतजार करना पड़ता है. उठती लहरों के समय सिर्फ मंदिर का पोल और पताका ही दिखते हैं, जिससे पता ही नहीं चलता कि समंदर के नीचे शिवजी का विशाल मंदिर भी होगा. यह प्राचीन मंदिर महाभारत कालीन है. मान्यता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर युद्ध जरूर जीता लेकिन अपने ही सगे -संबंधियों की हत्या का महापाप भी किया है.
इससे छुटकारे के लिए सभी कृष्ण की शरण में पहुंचे. कृष्ण ने पाप मुक्ति के लिए एक काली ध्वजा और एक काली गाय सौंपी. पांडवों से कहा कि आप सिर्फ गाय के पीछे-पीछे चलते जाएं जब गाय और ध्वजा का रंग काले से बदलकर सफेद हो जाएगी तो समझ लीजिएगा कि पाप मुक्ति मिल गर्ह. जहां ये चमत्कार होगा वहां शिवजी की तपस्या भी करनी होगी. यह सुनकर पांडव काली ध्वजा हाथ में लेकर गाय पीछे-पीछे चलने लगे. कई दिन तक अलग अलग जगह घूमने के बावजूद गाय या झंडे का रंग नहीं बदला तब तक वे गुजरात स्थित कोलियाक तट पहुंचे तो गाय और झंडा दोनों का रंग सफेद हो गया.
इससे खुश पांडवों ने वहीँ शिव का ध्यान कर तपस्या शुरू कर दी. भगवान तपस्या से खुश हुए और पांचों को लिंग रूप में अलग -अलग दर्शन दिए. ये पांचों शिवलिंग अभी भी वहां हैं. शिवलिंग के सामने नंदी प्रतिमा भी है और पांचों शिवलिंग वर्गाकार चबूतरे पर बने हैं. चबूतरे पर छोटा सा तालाब भी है, जिसे पांडव तालाब कहा जाता है. श्रद्धालु पहले यहां हाथ पांव धोते हैं, फिर शिवलिंगों की पूजा करते हैं. यहां आकर पांडवों को भाइयों की हत्या की कलंक से मुक्ति मिली थी, इसलिए इसका नाम निष्कलंक महादेव पड़ा.
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