सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है. एकादशी का व्रत अन्य व्रत के मुकाबले कठिन व्रतों में से एक है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. जैसा कि एकादशी के नाम से ही पता चल रहा है पापमोदनी एकादशी पापों से मुक्त करने वाली एकादशी होती है.
एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति समस्त पापों से यहां तक कि ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिलती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने द्वापरयुग में स्वयं इसका महत्व अर्जन को बताया है. इस बार पापमोचनी एकादशी 28 मार्च को पड़ रही है. इस दिन व्रत रखने और कथा का श्रवण करने से 1000 गौदान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी व्रत कथा.
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
धार्मिक कथा के अनुसार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे. मेधावी की तपस्या से इंद्र का सिंहासन हिल गया. इससे घबराकर इन्द्र ने मंजुघोषा नामक अप्सरा को ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए भेजा. अप्सरा की खूबसूरती देखकर ऋषि की तपस्या भंग हो गई. और ऋषि उसी अप्सरा के साथ रहने लगे.
कुछ समय साथ रहने के बाद मंजुघोषा अप्सरा ने ऋषि से स्वर्ग की वापसी की आज्ञा मांग ली. ऋषि को उस समय ये अहसास हुआ कि उनकी तपस्या भंग हो चुकी है. पता लगते ही ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने अप्सरा को श्राप दिया और कहा कि तूने मेरी तपस्या भंग की है, अब तू पिशाचिनी बन.
ऋषि के श्राप से दुखी अप्सरा मे बताया कि ये सब इंद्र के कहने पर किया है. और वे बार-बार ऋषि से श्राप से मुक्ति करने की विनती करने लगी. अप्सरा के इतनी विनती करने पर ऋषि ने पापमोचनी एकादशी के व्रत के बारे में बताया. अप्सरा ने ये व्रत पूरी श्रद्धा के साथ किया और वो श्राप से मुक्त हो गई. पापमोचनी एकादशी के व्रत को लेकर मान्यता है कि इससे न सिर्फ व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. बल्कि मृत्यु के पश्चात भगवद्धाम को जाता है.
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