Parivartini Ekadashi 2020: पाताल लोक में भगवान विष्णु इस समय विश्राम कर रहे हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस दिन से भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम के लिए जाते हैं उस दिन से ही चातुर्मास का आरंभ हो जाता है. इस समय चातुर्मास का भाद्रपद मास चल रहा है. जो चातुर्मास का दूसरा महीना माना गया है. देवउठानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का विश्राम काल का समय पूर्ण होता है. चातुर्मास में भगवान विष्णु के सो जाने के कारण कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.


परिवर्तिनी एकादशी का अर्थ
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम के दौरान करवट बदलते हैं. इसी कारण इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की स्तुति करने से पुण्य प्राप्त होता है. इस व्रत को जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक माना गया है. इस एकादशी को पाश्र्व एकादशी व्रत और पद्मा एकादशी भी कहा जाता है.


परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा
महाभारत की कथा में एकादशी के व्रत के पुण्य का वर्णन आता है. माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताया था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पापों का नाश करने के लिए परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था, जो असुर होने के बाद भी लोगों की मदद और सेवा करता था. धर्म-कर्म के कार्यों में सदैव लीन रहता था. अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया. बलि की भक्ति से देवराज इंद्र और अन्य देवता घबरा गए.


देवराज को लगने लगा कि यदि बलि को नहीं रोका गया तो वह स्वर्ग का राजा बन जाएगा. तब इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता प्रकट की. रक्षा करने की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया. वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी नहीं बचा.तब बलि ने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया. राजा बलि की इस भावना से भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न हुए और बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया.


Parivartini Ekadashi 2020: 29 अगस्त को है परिवर्तिनी एकादशी, जानें महत्व और व्रत आरंभ का समय