Parivartini Ekadashi 2021: भगवान वामन को देख राजा बलि की पुत्री के मन में आए थे ये विचार, अगले जन्म में बनीं थी पूतना राक्षसी
हर साल भाद्रपद मास (bhadrapad month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस साल परिवर्तिनी एकादशी 17 सितंबर को मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है.
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Parivartini Ekadashi Or Vaman Ekadashi 2021 Date: परिवर्तिनी एकादशी (parivartini ekadashi) को वामन एकादशी (vaman ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. ये हर साल भाद्रपद मास (bhadrapad month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस साल परिवर्तिनी एकादशी 17 सितंबर को मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है. इतना ही नहीं, सभी व्रतों में ये सबसे कठिन व्रत में से एक माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु (lord vishnu) निंद्रा मुद्रा में करवट लेते हैं, इसलिए इस एकादशी का नाम परिवर्तिनी एकादशी रखा गया है. इस दिन भगवान के वामन अवतार की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान के वामन अवतार (lord vishnu vaman avtar) और राजा बलि (raja bali) की कथा पढ़ने की मान्यता है. इसमें भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दो पग में दो लोक नाप दिए थे. इसके साथ ही राजा बलि की पुत्री रत्नमाला की कहानी भी इस दिन पढ़ी जाती है. आइए डालते हैं एक नजर इस कथा पर-
राजा बलि की पुत्री अगले जन्म में बनी पूतना
बता दें कि श्री कृष्ण द्वारा जिस पूतना राक्षसी का वध किया गया था, वो पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला (raja bali daughter ratanmala) थी. रत्नमाला पिछले जन्म में एक राजकन्या थी. राजा बलि के यहां जब भगवान विष्णु वामन अवतार में पधारे, तो उनकी सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नमाला के मन में ममत्व जाग उठा. रत्नमाला मन ही मन सोचने लगी कि काश उनका भी ऐसा ही पुत्र होता, जिसे वे हृदय से लगाकर दुग्ध पान कराती. रत्नमाला के मन में चल रहे इस भाव को भगवान वामन ने जान लिया था. जिसके बाद उन्होंने तथास्तु कहा. लेकिन इसके बाद भगवान वामन ने राजा बलि का अंहकार दूर करने के लिए तीन पग में सारी भूमि नाप दी. इसे राजा बलि समझ गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने भगवान वामन से माफी मांगी. रत्नमाला ये सब देख रही थी. उसे लगा कि ये उसके पिता का अपमान है. और वह इसे देख क्रोधित हो गई और भगवान को मन ही मन बुरा-भला कहना शुरू कर दिया. रत्नमाला मन ही मन कहने लगी कि अगर ये मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती. भगवान रत्नमाला के इस भाव को भी जान गए और तथास्तु कह दिया.
यूं पूरी हुई उसकी इच्छा
भगवान द्वारा तथास्तु कहने के कारण रत्नमाला ने अगले जन्म में पूतना राक्षसी (putana) के रूप में जन्म लिया. मथुरा में कंस की दासी बनी और गोकुल में श्री कृष्ण को मारने के लिए पूतना को भेजा गया. पूतना ने गोकुल पहुंच कर वेष बदल लिया. उसने सुंदर स्त्री का वेश धारण कर लिया. वो भगवान श्री कृष्ण के (shri krishan) पास गई और उन्हें दुग्धपान करना लगी. भगवान श्री कृष्ण ने पूतना को पहचान लिया था और उसका वध कर दिया. पूतना की भगवान विष्णु की दुग्ध और विष पिलाने की इच्छा को भी पूर्ण किया. भगवान श्री कृष्ण ने पूतना को जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर दिया.
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