Parivartini Ekadashi Aarti/Mantra: हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है. चतुर्मास में पड़ने वाली एकादशी का और भी ज्यादा महत्व है. कहते हैं कि चतुर्मास में भगवान विष्णु (lord vishnu) शयन करते हैं और देवउठनी एकादशी (dev uthani ekadashi) के दिन देव उठते हैं और भक्तों पर खूब कृपा बरसाते हैं. इस बार परिवर्तिनी एकादशी 17 सितंबर (parivartini ekadashi 17th september) सोमवार के दिन मनाई जाएगी. इसे जलझूलनी एकादशी (jaljhulani ekadashi) या पद्मा एकादशी (padma ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. पद्म पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण (lord shri krishna) ने कहा है कि चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु वामन रूप (lord vishnu vaman roop) में पाताल में निवास करते हैं. इसलिए इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करनी चाहिए. इस दिन महिलाएं व्रत रखकर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करती हैं. इस दिन की गई पूजा-अर्चना और व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहते हैं इस तिथि को यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. 


इस दिन सच्चे दिल से लिया गया भगवान का नाम भी काफी होता है. पूजा-अर्चना के साथ-साथ इस दिन मंत्र का जाप भी जरूर करना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्री हरि के मंत्र का जाप (bhagwan hari mantra chanting) भी जरूर करना चाहिए. लेकिन कई भक्तों को ये नहीं पता होता कि इस दिन किन मंत्रों का जाप किया जाता है. शास्त्रों में ऐसे कौन से मंत्र हैं जिनका जाप करने से भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं. तो चलिए इन मंत्रों के बारे में हम आपको बताते हैं.


भगवान विष्णु परिवर्तिनी एकादशी मंत्र (bhagwan vishnu parivartini ekadashi mantra)


ऊं नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।


शांताकारं भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।


विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।


लक्ष्मीकान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।


वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।।



हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।


हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।


श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा।


ओम नमो नारायणा।


भगवान विष्णु आरती (bhagwan vishnu aarti)


ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥


जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।


सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।


तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥


तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥


पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥


तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।


मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।


किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥


दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।


अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥


विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।


श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥


तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।


तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥


जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।


कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥  


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