(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Parivartini Ekadashi: कल है परिवर्तिनी एकादशी, इस बार बन रहा है ये अद्भुत संयोग, जानें महत्व
Parivartini Ekadashi 2020: पंचांग के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी इस बार 29 अगस्त 2020 को पड़ रही है. इस दिन दो तिथियों का अद्भुत संयोग हो रहा है. आइये जानें क्या है इसका महत्त्व?
Parivartini Ekadashi 2020: हिन्दू पंचांग में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं. परिवर्तिनी एकादशी का व्रत या उपवास 29 अगस्त 2020 दिन शनिवार को किया जाना है. यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी की तिथि को किया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि इसी तिथि को भगवान विष्णु शयन अवस्था में अपना करवट बदलते हैं. भगवान विष्णु के एकादशी तिथि में अपना करवट बदलने या परिवर्तित करने के कारण ही इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.
पद्म पुराण में इस एकादशी के महात्म्य को बताते हुए श्री कृष्ण जी कहते हैं कि इन चार महीनों में भगवान वामन रूप में पाताल लोक में निवास करते हैं इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करनी चाहिए. इसलिए इसको पद्मा या पार्श्व एकादशी भी कहा जाता है.
इस बार परिवर्तिनी एकादशी के दिन बन रहा है यह अद्भुत संयोग:
29 अगस्त 2020 को पड़ने वाले परिवर्तिनी एकादशी पर इस बार शुभ संयोग बन रहा है. क्योंकि परिवर्तिनी एकादशी के साथ ही इस बार भगवान विष्णु के 5वें अवतार वामन भगवान का भी जन्मोत्सव मनाया जाना है.
इस संयोग के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. इसके साथ ही साथ इस दिन एकादशी के साथ द्वादशी भी लग रही है जिसकी वजह से एकादशी और द्वादशी दोनों तिथियों का संयोग बन रहा है.
इस परिवर्तिनी एकादशी पर एक योग और भी बन रहा है और वह योग है ‘आयुष्मान योग’. आयुष्मान योग के महात्म्य के बारे में शास्त्रों में यह बताया गया है कि इस योग में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना या आराधना करने पर सुख-शांति मिलती है और सभी तरह के कष्टों से छुटकारा भी मिलता है.
इस आयुष्मान योग को अत्यधिक मंगलकारी माना गया है क्योंकि आयुष्मान योग के स्वामी गुरु हैं जो भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि करते हैं.
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि:
परिवर्तिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़ा पहन लेना चाहिए. इसके बाद जिस जगह पर पूजा करनी है उस जगह को साफ करके वहां पर गंगा जल डाल दें जिससे वह जगह पवित्र हो जाय.
इसके बाद उस जगह पर एक साफ चौकी रखकर उस पर साफ पीले रंग का कपड़ा बिछा दें. कपड़ा बिछाने के बाद उस पर भगवान लक्ष्मी नारायण की मूर्ति स्थापित करें. मूर्ति स्थापित करने के बाद उस पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाकर दीपक जला दें.
पीला रंग भगवान को अत्यधिक प्रिय होने के कारण उन्हें पीले रंग का फूल चढाएं और पीले रंग की मिठाई से भोग जरूर लगाएं. इतना करने के बाद विष्णु चालिसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. पाठ करने के बाद भगवान विष्णु के मन्त्रों या नाम का जाप भी करें. सबसे अंत में विष्णु जी की आरती और क्षमा प्रार्थना भी अवश्य करें.