Parama Ekadashi 2023: परमा एकादशी व्रत कब, आर्थिक परेशानी से मुक्ति पाने को करें ये उपाय
Parma Ekadashi 2023: परमा एकादशी का व्रत केवल अधिकमास में पड़ता है. 12 अगस्त 2023 को परमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. ये अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है. आइये जानते हैं परमा एकदाशी व्रत की कथा.
Parma Ekadashi 2023: अधिक मास में पड़ने वाली एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है. इस साल अधिकमास 18 जुलाई 2023 से शुरु हो चुका है.अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है. इसे अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है. इस साल परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त 2023, शनिवार के दिन रखा जाएगा.
अधिकमास की परमा एकादशी धन संकट दूर करने वाली एकादशी मानी जाती है. इस व्रत को रखने से जातकों को सभी दुख-दर्द से मुक्ति मिलती है. परमा एकादशी अपने नाम के अनुसार परम सिद्धियां प्रदान करने वाला व्रत है, इस एकादशी का व्रत बहुत ही ज्यादा फलदायी माना गया है. अगर किसी कारण से आप व्रत नहीं रख पाते तो परमा एकादशी की कथा के सुनने से भी मनुष्य की दरिद्रता दूर हो जाती है.
परमा एकादशी कथा (Parma Ekadashi Katha)
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था. उसकी स्त्री अत्यंत पवित्र तथा पतिव्रता थी. किसी पूर्व पाप के कारण वह दंपती अत्यंत दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे थे. ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी. उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा करती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी.
एक दिन ब्राह्मण ने अपनी स्त्री से परदेस जाकर कुछ काम करने की बात कहीं लेकिन उसकी पत्नी बहुत दयावान थी उसने अपने पति को कहा जो ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता. उसने अपने पति को इसी स्थान पर रहने को कहा और बोली जो भाग्य में होगा, वह यहीं प्राप्त हो जाएगा. स्त्री की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया. इसी प्रकार समय बीतता रहा. एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां आए. ऋषि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया. दंपत्ति ने ऋषि से दरिद्रता का नाश करने की विधि पूछी,ऋषि ने बताया मल मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी पाप, दुःख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं. जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है. इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए.
यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है. धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया. इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी. जो मनुष्य पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने मां-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं. इस प्रकार ब्राह्मण और उसकी स्त्रीकी गरीबी इस व्रत को करने के बाद दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी श्रीविष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए.
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