Parshuram Jayanti 2022: भगवान परशुराम जी महाराज किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं. इन्होंने सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है. भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था. लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था.


धर्म शास्त्रों के अनुसार, इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था. इस तिथि को अक्षय तृतीया भी कहते हैं. भगवान परशुराम की जयंती  हर साल अक्षय तृतीया को मनाई जाती है. इस बार इनकी जयंती 3 मई को मनाई जा रही है.


भगवान परशुराम के जन्म की कथा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में माना जाता है. उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था. उनके पिता ऋषि जमदग्नि थे. ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था. ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया. इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी ने जन्म लिया. ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था. राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानि परशु प्रदान किया. इसके बाद वह परशुराम कहलाए.


परशुराम को चिरंजीवी कहा जाता है वह आज भी जीवित हैं. उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है. श्री कृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था.


भगवान परशुराम की पूजा विधि


अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके एक साफ पीले वस्त्र पर भगवान परशुराम की प्रतिमा को रखें और उसके सामने धूप दीप अगरबत्ती जलाकर फूल फल चढाकर भगवान परशुराम की पूजा और आरती करें. इसके बाद भगवान परशुराम के सामने अपनी इच्छा को व्यक्त करें. पूजा के उपरांत यथाशक्ति दान का भी प्रावधान है. लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें. व्रत रखने वाले व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए. उसे फलाहार व्रत करना चाहिए. एकाग्र मन से भगवान परशुराम की पूजा करने पर मनवांछित फल प्राप्त होता है.



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