Parshuram Jayanti 2024: आज परशुराम जयंती है. परशुराम जी (Parshuram ji) का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था. विष्णु जी के छठे अवतार परशुराम जी का स्वभाव उग्र था. देवतागण भी उनके क्रोध से कांपते थे. एक बार शिव पुत्र गणेश जी पर उन्हें इतना क्रोध आया कि उन्होंने अपने फरसे (Farsa) से उनपर वार कर दिया, इस घटना में गणेश जी का दांत टूट गया था.


परशुराम जी को लेकर एक ऐसी ही घटना का वर्णन वाल्मीकि रामायण (Ramayan) में भी किया है, जब परशुराम जी ने लक्ष्मण जी पर भी फरसा उठा लिया था, आइए जानते परशुराम और लक्ष्मण (Laxman ji) जी का ये रोचक संवाद.


परशुराम-लक्ष्मण संवाद (Parshuram Laxman Samvad)


रामचरितमानस में परशुराम जी और लक्ष्मण जी के बीच हुई बहस का वर्णन किया गया है. इसके अनुसार राजा जनक जब पुत्री सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन करते हैं तो शिव जी के धनुष को उठाना तो दूर हिला वहां मौजूद कोई भी राजा उसे हिला तक नहीं पाता.


फिर ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा लेकर श्रीराम धनुष का भंजन करते हैं. धनुष टूटने की सूचना मिलते ही परशुराम जी क्रोधित होकर स्वयंवर में आ जाते हैं.




मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले - हे गोसाईं! लड़कपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डालीं, लेकिन आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया. इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है?


परशुराम जी बोले - यह सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप परशुराम कुपित होकर कहने लगे. अरे राजपुत्र! काल के वश होने से तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं है. सारे संसार में विख्यात शिव का यह धनुष क्या धनुही के समान है?


लक्ष्मण ने हसकर कहा - हे देव! सुनिए, हमारे जान में तो सभी धनुष एक-से ही हैं. पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-लाभ! राम ने तो इसे नवीन के धोखे से देखा था.


फिर यह तो छूते ही टूट गया, इसमें रघुनाथ का भी कोई दोष नहीं है। मुनि! आप बिना ही कारण किसलिए क्रोध करते हैं?


परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर बोले - अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना. मैं तुझे बालक जानकर नहीं मारता हूं. अरे मूर्ख! क्या तू मुझे निरा मुनि ही जानता है? मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूं क्षत्रियकुल का शत्रु तो विश्वभर में विख्यात हूँ. हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले मेरे इस फरसे को देख!


मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करनेवाला है॥


लक्ष्मण हंसकर कोमल वाणी से बोले - अहो, मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं. बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हैं. फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं.


यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (छोटा कच्चा फल) नहीं है, जो तर्जनी अंगुली को देखते ही मर जाती हैं. कुठार और धनुष-बाण देखकर ही मैंने कुछ अभिमान सहित कहा था. 


भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवीत देखकर तो जो कुछ आप कहते हैं, उसे मैं क्रोध को रोककर सह लेता हूं देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ - इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती. आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है. धनुष-बाण और कुठार तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं. मैंने कुछ अनुचित कहा हो, तो उसे हे महामुनि! क्षमा कीजिए.



लक्ष्मण ने कहा - हे मुनि!  क्रोध रोककर असह्य दुःख मत सहिए। आप वीरता का व्रत धारण करनेवाले, धैर्यवान और क्षोभरहित हैं गाली देते शोभा नहीं पाते.  शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं॥


लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधारकर हाथ में ले लिया और बोले - यह कड़वा बोलनेवाला बालक मारे जाने के ही योग्य है. इसे बालक देखकर मैंने बहुत बचाया, पर अब यह सचमुच मरने को ही आ गया है. परशुराम जी को रोकने के लिए विश्वामित्र जी ने क्षमा मांगी.


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