Pausha Putrada Ekadashi 2025: एकादशी व्रत सबसे अधिक फलदायी माना गया है. श्रीकृष्ण ने कहा है कि संसार में पुत्रदा एकादशी उपवास के समान अन्य दूसरा व्रत नहीं है. इसके पुण्य से प्राणी तपस्वी, विद्वान और धनवान बनता है, जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढ़ता व श्रवण करता है तथा विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न संतान की प्राप्ति होती है.
श्रीहरि की अनुकम्पा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है. पौष पुत्रदा एकादशी की कथा के बिना ये व्रत अधूरा है, पूजा में इसका श्रवण जरुर करें. इस साल पौष पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी 2025 को है.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई संतान नहीं थी. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते. इस तरह राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था.
इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया. एक दिन वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया. पानी की तलाश में राजा आगे बढ़े.
कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला. सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके सामने बैठ गया.ऋषिवर बोले - 'हे राजन! हम तुमसे अति प्रसन्न हैं. तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो।' राजा ने प्रश्न किया - 'हे विप्रो! आप कौन हैं? और किसलिए यहां रह रहे हैं?'
ऋषि बोले - 'राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है. आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब इस सरोवर में स्नान करने आए हैं.' ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा - 'हे मुनियो! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान वीजिए.'
ऋषि बोले - 'हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका उपवास करें. भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा.' राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया.
भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ. यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना." हे श्रीहरि जिस तरह एक निसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति हुई इसी तरह संसार में हर प्राणी को माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो.
कैसे करें एकादशी व्रत
एकादशी व्रत सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक किया जाता है. ये निराहार या जलाहार भी रखा जाता है. इस व्रत में रात्रि जागरण किया जाता है. इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं.
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