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Putrada Ekadashi 2023: साल 2023 की पहली एकादशी कल,जानें शुभ मुहूर्त और महत्व, यहां पढ़ें व्रत की कथा

Pausha Putrada Ekadashi 2023: पौष मास शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी साल की पहली एकादशी है. पुत्रदा एकादशी का व्रत नए साल में सोमवार 02 जनवरी 2023 को रखा जाएगा.

Pausha Putrada Ekadashi 2023, Date, Puja Vidhi, Vrat Katha and Significance: पंचांग के अनुसार वैसे तो प्रत्येक माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है. इस तरह से पूरे साल में 24 और अधिकमास होने पर 26 एकादशी पड़ती है. सभी एकादशी व्रत के अलग-अलग नाम और महत्व होते हैं, जोकि भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होते हैं. लेकिन नए साल 2023 की पहली एकादशी कब और कौन सी पड़ रही है, आइये जानते हैं.

नए साल 2023 में सोमवार 02 जनवरी 2023 को साल की पहली एकादशी पड़ेगी. इसे पौष पुत्रदा एकादशी या वैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जता है. हिंदू धर्म में पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी का विशेष महत्व होता है. कहा जाता है कि मात्र इस एकादशी के व्रत को करने से हजारों साल की तपस्या के समान फल की प्राप्ति होती है. जानते हैं साल की पहली एकादशी के मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में.

पुत्रदा एकादशी महत्व (Putrada Ekadashi 2023 Significance)

पौष मास शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की दीर्घायु और स्वस्थ स्वास्थ्य हेतु रखा जाता है. वैसे तो यह व्रत साल में दो बार रखा जाता है. पहली पुत्रदा एकादशी पौष मास में पड़ती है और दूसरी सावन मास में. इस एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं और घर धन-संपत्ति से भर जाता है. जो व्यक्ति इस व्रत को करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं.

पौष पुत्रदा एकादशी तिथि व मुहूर्त (Pausha Putrada Ekadashi 2023 Puja Muhurat)

  • पौष शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि आरंभ- रविवार 1 जनवरी 2023 शाम 07:12 से शुरू
  • पौष शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि समाप्त- सोमवार 2 जनवरी 2023, शाम 08:24 तक
  • पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण- मंगलवार 03 जनवरी 2023,  सुबह 07:12 से 09:20 तक

पुत्रदा एकादशी पूजा विधि (Putrada Ekadashi Puja Vidhi)

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि कर साफ कपड़े पहनें. इस दिन काले, भूरे या स्लेटी रंग के कपड़े न पहनें. पीले रंग का कपड़ा पहनना सबसे  शुभ होता है. इसके बाद पूजा के मंदिर मे दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें और एक कलश की स्थापना करें. पूजा की चौकी में पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और कलश में भी लाल वस्त्र लपेटकर चौकी के पास रखकर पूजा करें. भगवान को फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बैर, आंवला, नैवेद्य आदि अर्पित करें और इसके बाद धूप-दीप दिखाएं और आरती करें. पूजा में पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा जरूर पढ़ें या सुनें.

अगले दिन यानी द्वादशी को सुबह पूजा पाठ करें और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें. विधिपूवर्क इस तरह से पुत्रदा एकादशी के व्रत को करने से व्यक्ति तपस्वी, विद्वान और पुत्रवान होता है.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)

धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताते हैं. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं. इसमें भगवान नारायण की पूजा होती है. भगवान कृष्ण कहते हैं- इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है. मैं एक कथा कहता हूं सो तुम (युधिष्ठिर) ध्यानपूर्वक सुनो.

भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नामक राजा का राज्य था. राजा बहुत  दयालु स्वभाव का था. लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी, जिस कारण राजा और उसकी पत्नी हमेशा चिंतित रहते थे. राजा को सदैव यह विचार आता था कि उसकी मृत्यु के बाद उसका और पूर्वजों का पिंडदान कौन करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका पाऊंगा. राजा इस चिंता को लेकर दिन रात दुखी रहता था.

एक दिन राजा अपने घोड़े पर चढ़कर वन की ओर गए. वन में एक सरोवर के पास राजा ने मुनियों को देखा और उन्हें दंडवत प्रणाम कर वहीं बैठ गए. राजा को देख मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो. राजा ने कहा, महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं. मुनि ने कहा, हे राजन! आज संतान प्राप्ति वाली एकादशी ‘पुत्रदा एकादशी’ है. हम विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं.

यह सुनकर राजा ने मुनियों से कहा कि, महाराज मुझे भी कोई संतान नहीं है. यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो संतान का वरदान दीजिए. मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इस व्रत को करें.  इस व्रत को करने से भगवान की कृपा से आपके घर में अवश्य ही पुत्र का जन्म होगा. मुनि की बातें सुनकर राजा ने उसी दिन विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का ‍व्रत किया और अगले दिन पारण करने और मुनियों को प्रणाम कर वापस महल आ गए. कुछ समय बीतने के बाद रानी गर्भवती हो गई और नौ महीने बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया.

श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर  से बोले- हे राजन! संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. जो व्यक्ति व्रत रख कर इस माहात्म्य कथा को पढ़ता या सुनता है उसे संतान की प्राप्ति होती है और अंत वह स्वर्ग को प्राप्त करता है.

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Disclaimer:यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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