Pithori Amavasya 2021: पिठौरी अमावस्या के दिन ये कार्य करना होता है फलदायी, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Pithori Amavasya 2021 Date: भाद्रपद मास श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है. इस महीने में किए गए व्रत और पूजा-पाठ का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है.
Pithori Amavasya 2021 Date: भाद्रपद मास श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है. इस महीने में किए गए व्रत और पूजा-पाठ का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है. भाद्रपद में पड़ने वाली अमावस्या का भी विशेष महत्व है. इसे पिठौरी अमावस्या (Pithori amavasya) भी कहते हैं. इस साल पिठौरी अमावस्या 7 सितंबर 2021, सोमवार को मनाई जाएगी. भादो मास में पड़ने वाली अमावस्या को पिठौरी या फिर कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन स्नान, दान और पितरों के लिए तर्पण को शुभकारी और मंगलकारी माना जाता है. भाद्रपद अमावस्या इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा यानि घास इकट्ठी की जाती है, जो कि काफी फलदायी मानी जाती है. पिठौरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपने पति और बच्चों के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन देवी दुर्गा जी की पूजा की जाती है.
पिठौरी अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त (Pithori Amavasya Shubh Muhurat)
अमावस्या तिथि आरंभ: 6 सितंबर 2021 को शाम 07 बजकर 40 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 7 सितंबर 2021 को शाम 06 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी.
पिठौरी अमावस्या पूजा विधि (Pithori Amavasya Pujan Vidhi)
भादो महीने में अमावस्या का व्रत रखने का काफी महत्व है. इस दिन महिलाएं और माताएं ही व्रत रख सकती हैं. ये व्रत कुंवारी महिलाओं के लिए नहीं होता. इस दिन सुबह उठकर स्नान करें (हो सके तो पवित्र नदी में), संभव हो तो पानी में गंगाजल डालकर छिड़क लें. स्नान के बाद साफ कपड़े पहन लें और व्रत का संकल्प लें. पीठ का मतलब होता है आटा. इसलिए इस दिन 64 देवियों की आटे से प्रतिमा बनाने का विधान है. उनकी वस्त्र पहनाकर उनकी पूजा की जाती है. मूर्तियों के गहने बनाने के लिए बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूड़ी, कान और गले के बनाकर देवी को चढ़ाएं. सभी देवताओं को एक प्लेट में रखकर उन पर पुष्प चढ़ाएं.
इतना ही नहीं, पूजा के लिए गुझिया, शक्कर पारे, गुज के पारे और मठरी बनाएं और देवी-देवताओं को भोग लगाएं. पूजा के बाद आटे से बनाए देवी-देवताओं की आरती करें. पूजा-अर्चना करने के बाद पंडिज जी या घर के किसी बड़े को पकवान देकर उनके पैर छुएं. पंडित को खाना खिलाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें. इस तरह से किए गए व्रत को ही पूर्ण माना जाएगा और व्रत लाभ मिलेगा.
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