Pitru Paksha 2020: हिंदू धर्म में सनातन काल से ही पूर्वजों को पूज्यनीय माना गया है. वैदिक समय में पितृयज्ञ का वर्णन मिलता है. जो बाद में श्राद्ध कहा जाने लगा. पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के विधान में कोई परिवर्तन नहीं आया. आदिकाल से चले आ रहे नियमों का आज भी पालन किया जाता है. श्राद्ध का वर्णन महाभारत काल में मिलता है.


भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था महत्व

मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को विस्तार से श्राद्ध कर्म के बारे में बताया था. पौराणिक मान्यताओं के आधार पर श्राद्ध का प्रथम उपदेश महर्षि निमि ने अत्रि मुनि को दिया था. निमि महर्षि को श्राद्ध कर्म का विधान बनाने वाला माना जाता है. इसके बाद प्रमुख कर्मों में सम्मिलित किया गया. कहते हैं कि महाभारत के विनाशकारी युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से सभी वीरगति को प्राप्त सैनिकों का अंतिम संस्कार और श्राद्ध किया था.


कर्ण के बारे में श्रीकृष्ण ने दी ये जानकारी

सभी वीरों का जब श्राद्ध कर्म आरंभ हुआ तो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कर्ण का भी श्राद्ध और तर्पण करने के लिए कहा. इस पर युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि वे कर्ण का कैसे श्राद्ध कर सकते हैं, कर्ण उनके कुल के नहीं है. तब श्रीकृष्ण ने रहस्य से पर्दा उठाते हुए कहा कि युधिष्ठिर कर्ण तुम्हारे ही कुल का है और तुम्हारा बड़ा भाई है. इस बात को सुनकर युधिष्ठिर हतप्रभ रह गए.


महाभारत के अनुशासन पर्व में है वर्णन

महाभारत के संपूर्ण भागों को 18 खंडों में विभाजित किया है. इन खड़ों में एक खंड को अनुशासन पर्व भी कहा जाता है. जिसमें श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को आवश्यक बातें बताई थीं.


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