(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Pitru Paksha 2021: पितृपक्ष के दौरान बिहार के गया में पिंडदान का क्या है महत्व, जानें पौराणिक कथा
Pind Daan Importance In Gaya: भाद्रपद की पूर्णिमा (Bhadrapad Purnima) से पितृपक्ष (Pitru Paksha) की शुरुआत हो चुकी है. 21 सितंबर यानि की आज पितृपक्ष तिथि का पहला दिन है, इसे प्रतिपदा तिथि कहा जाता है.
Bihar Gya ji Pind Daan: भाद्रपद की पूर्णिमा (Bhadrapad Purnima) से पितृपक्ष (Pitru Paksha) की शुरुआत हो चुकी है. 21 सितंबर यानि की आज पितृपक्ष तिथि का पहला दिन है, इसे प्रतिपदा तिथि कहा जाता है. अब यह पितृपक्ष अश्विन मास की अमावस्या (Ashwin Month Amavasya) तक चलेगें. इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनका पिंडदान कर्म (Pind Daan), तर्पण (Tarpan) और दान आदि करते हैं. ताकि उनकी आत्मा तृप्त होकर लौटे. कहते हैं कि इन 16 दिनों के लिए यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें.
पुराणों के मुताबिक मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का सरल और सहज उपाय पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करना है. देश के कई स्थानों पर पिंडदान किए जाने की परंपरा है, लेकिन बिहार के गया जी में पिंडदान का अलग महत्व है. ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है. आइए जानते हैं इसका कारण.
बिहार के गया में पिंडदान का महत्व (Pind Daan Importance In Bihar Gaya)
गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड में गया में होने वाले पिंडदान के महत्व के बारे में बताया गाया है. इसके अनुसार ब्रह्मा जी जब श्रष्टि की रचना कर रहे थे, उस समय असुर कुल में गया नाम के असुर की रचना हुई. उसने किसी असुर स्त्री की कोख से जन्म नहीं लिया था, इसलिए उसमें असुरों वाली कोई प्रवृति नहीं थी. ऐसे में गया नामक असुर के मन में ख्याल आया कि अगर वो कोई बड़ा काम करेगा, तो उसे अपने कुल में सम्मान मिलेगा. ऐसा सोचकर उसने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करने लगा. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा.
भगवान विष्णु की बात सुनते ही उसने कहा कि आप मेरे शरीर में वास करें, ताकि जो कोई मुझे देखे उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएं. वह जीव पुण्य आत्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में जगह मिले. भगवान विष्णु के इस वरदान के बाद जो कोई भी उसे देखता उसके सारे कष्ट दूर हो जाते और दुखों का निवारण हो जाता. यह देख सभी देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु की शरण में आए. इस दौरान श्री हरि ने उन्हें आश्वासन दिया कि गयासुर का तुरंत अंत होगा. तभी कुछ दिन बाद गयासुर भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गया और कीकटदेश में शयन करने लगा. उसी समय वे भगवान विष्णु के गदा से मारा गया.
लेकिन मरने से पहले भी उसने भगवान विष्णु से एक और वर मांग लिया. उसने कहा कि मेरी इच्छा है कि आप सभी देवी-देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए. गयासुर की इच्छा सुन श्री हरि ने उसे आर्शीवाद दिया कि यहां पितरों का श्राद्ध तर्पण करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. तब से ही यहां पर पितरों का श्राद्ध तर्पण किया जाता है.