(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Pitru Paksha 2021: श्राद्ध कर्म के दौरान इन तीन चीजों के बिना अधूरी रह जाएगी प्रक्रिया, भूलकर भी न करें इन चीजों को नजरअंदाज
Shradha 2021: पितृपक्ष पूर्णिमा (Pitru Paksha Purnima) से श्राद्ध आरंभ हो चुके हैं. शुद्ध पितृपक्ष की 21, सितबंर मंगलवार यानि कल से शुरुआत होगी. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है.
Sharadh Karma Important Things: पितृपक्ष पूर्णिमा (Pitru Paksha Purnima) से श्राद्ध आरंभ हो चुके हैं. शुद्ध पितृपक्ष 21, सितबंर मंगलवार यानि कल से शुरुआत होगी. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है. किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अगर संतान श्राप (Santan Shrap In Kundali), पिृत दोष (Pitru Dosh) या किसी भी तरह के ग्रह दोष है तो मुक्ति पाने के लिए महालय (Mahalay) यानी श्राद्ध पक्ष श्रेष्ठ उपाय है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्राद्ध कर्म के दौरान तीन चीजों के बिना श्राद्ध प्रक्रिया अघूरी रह जाएगी. शास्त्रों के अनुसार किसी भी श्राद्ध कर्ता को तर्पण आदि करते समय कुश, तिल और तुलसी का प्रयोग जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से पितृ पूर्णरूप से तृप्त होकर अपने वंशजों को आर्शीवाद देकर अपने लोक चले जाते हैं. आइए जानते हैं कि श्राद्ध क्रिया में किन तीनों चीजों का होना जरूरी क्यों है.
1. शास्त्रों में कहा गया है कि कुश भगवान विष्णु का अहम हिस्सा है. सनातन धर्म में कुश को सबसे शुद्ध माना गया है. इसलिए श्राद्ध क्रिया के दौरान कुश को शामिल करना बहुत जरूरी है. धार्मिक मान्यता है कि कुश की उत्पत्ति भगवान विष्णु के रोम से हुई है. कहा जाता है कि इसे धारण करके तर्पण करने से पितर की आत्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है.
2. पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान तिल का प्रयोग भी बहुत जरूरी होता है. क्योंकि तिल की उत्पत्ति भी विष्णु जी से हुई है. कहते हैं कि तिल की उत्पत्ति पसीने से हुई है. ऐसे में पिंडदान के समय तिल का प्रयोग करने से पितर को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
3. तर्पण के समय काले तिल का इस्तेमाल शुभ माना जाता है. विष्णु जी को काले तिल प्रिय होने के कारण ही इसे तर्पण में प्रयोग किया जाता है. साथ ही ये यम के देवता को भी समर्पित है इसलिए श्राद्ध पक्ष में काले तिल शुभ माने जाते हैं. इसलिए पिंड दान करते समय चावल के साथ काले तिल मिलाए जाते हैं.
4. पितृपक्ष क्रिया में तुलसी भी महत्वपूर्ण है. ऐसा माना जाता है कि तुलसी कभी बासी या अपवित्र नहीं होती. इसलिए एक दिन चढ़ाई गई तुलसी को दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है.
5. पौराणिरक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध कर्म के दौरान तुलसी, तिल, गौ, ब्राह्मण मोक्ष प्रदान करते हैं. इसलिए श्राद्ध कर्म के दौरान इनमें से किसी एक चीज का भी प्रयोग पितरों की आत्मा को मुक्ति दिला सकता है. धार्मिक मान्यता है कि तुलसी की गंध से पितर प्रसन्न होते हैं. इसलिए पितृपक्ष के दौरान इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.
6. पौराणिक कथा के अनुसार श्राद्ध कर्म के दौरान तुलसी का प्रयोग करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आर्शीवाद देते हैं. साथ ही उनकी आत्मा अंनतकाल के लिए तृप्त हो जाती है.
7. पितृपक्ष में ब्राह्मण को भोजन कराने की भी परंपरा है. इस दौरान ब्राह्मण के पैर धोना भी शुभ माना जाता है. उनके चरण हमेशा बैठाकर ही छुएं. ध्यान रहे कि ब्राह्मणों के चरण अगर खड़े होकर धोएं जाएं तो पितर नाराज हो जाते हैं.
8. पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार दान करें. इससे पितृ प्रसन्न होगें और घर में खुशहाली आएगी. इस दौरान गाय, भूमि, तिल, सोना, घी, गुड़, वस्त्र, धान्य, चांदी, नमक इन दस वस्तुओं का दान महादान माना जाता है.