Pitru Paksha Tithi Importance: हिंदू पंचाग (hindu calander) के अनुसार इस साल भाद्रपद मास (bhadrapad month) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (shukla paksha ppurnima) के दिन से श्राद्ध तिथि (sharadha tithi) आरंभ हो रही हैं. इनका समापन 6 अक्टूबर अमावस्या के दिन होगा. पितृ पक्ष (pitru paksha)16 दिन चलते हैं, जो कि अमावस्या के दिन समाप्त होते हैं. पितृ पक्ष में पहली और आखिरी तिथि को काफी खास माना गया है. पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के निधन की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. कहते हैं पितरों का श्राद्ध विधि पूर्वक करना जरूरी होता है. श्राद्ध के दिनों में पितर नीचे धरती पर आते हैं और किसी भी रूप में अपने वंशजों के घर जाते हैं. ऐसे में अगर उन्हें तृप्त न किया जाए, तो उनकी आत्मा अतृप्त ही लौट जाती है. नाराज पितर अपने वंशजों को श्राप दे जाते हैं. वहीं, अगर पितर खुशी-खुशी वापस जाते हैं, तो वंशजों को खूब सारा आर्शीवाद दे जाते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है. 


पितृपक्ष की तिथियां (pitru paksha tithiyan)
पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 01 अक्टूबर
एकादशी श्राद्ध 02 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- 03 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध – 04 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 05 अक्टूबर  
अमावस्या श्राद्ध- 06 अक्टूबर


पितृपक्ष तिथियों का महत्व (pitru paksha importance)
पितृपक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार उसी तिथि पर पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है. लेकिन अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु तिथि भूल गए हैं या आपको मालूम नहीं है, तो उन व्यक्तियों का श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन उन सभी का श्राद्ध कर सकते हैं जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती. 


पिंडदान विधि (pinddan vidhi)
पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म या पिंडदान जरूरी होता है. पिंडदाव हमेशा किसी विद्वान ब्रह्माण से ही करवाना चाहिए. पिंडदान हमेशा गंगा नदी के किनारे ही किया जाता है, अगर संभव हो तो गंगा नदी पर करवाएं. अगर संभव न हो तो घर पर भी करवा सकते हैं. पिंडदान या श्राद्ध कर्म दिन के समय ही होना चाहिए. पिंडदान कर्म में ब्राह्मण द्वारा मंत्रोच्चारण किया जाता है और पितरों का स्मरण करते हुए पूजा आरंभ की जाती है. इसके बाद जल से तर्पण करें. इसके बाद जो भोग लगाया जाना है उसमें से पंचबली भोग यानि गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर दें. इनको भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण जरूर करें. ऐसा करते समय उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना न भूलें. आकिर में ब्राह्मण को भोजन करवाते हुए उन्हें दान दक्षिणा देकर सम्मान के साथ विदा करें. 


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