Pitru Paksha 2021: पितृ पक्ष 21 सितंबर को शुरू हो चुका है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है और उन्हें पिंडदान एवं तर्पण किया जाता है. तपर्ण, पिंडदान और श्राद्ध का कर्म मुख्यतः उनके पुत्रों-प्रपुत्रों या पुरुषों द्वारा किया जाता है. यह भी भ्रांति है कि तपर्ण या पिंडदान का कर्म महिलायें नहीं कर सकती है. परंतु गरूण पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा रामायण आदि शास्त्रों के प्रसंगों से यह ज्ञात होता है कि सनातन धर्म में महिलाओं को भी श्राद्ध करने का अधिकार है. महिलाएं भी कुछ विशेष परिस्थितियों में श्राद्ध कर्म कर सकती हैं. आइये जानें पौराणिक विधान, नियम व विशेष परिस्थितियों के बारे में:-



सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का कर्म केवल पारिवारिक सदस्यों में लड़के या पुरुष वर्ग द्वारा ही किया जाता है. लेकिन विशेष परिस्थितियों में परिवार की महिलाओं या पुत्रियों और पुत्रवधुओं को भी पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का अधिकार प्रदान किया गया है.


महिलाओं के श्राद्ध करने का विधान


गरूण पुराण के अनुसार, जिस मृत व्यक्ति का कोई पुत्र, भाई या भतीजा आदि पुरूष रिश्तेदार न हो या वो श्राद्ध कर्म करने की स्थिति में न हो तो ऐसी परिस्थिति में घर की महिलाओं को श्राद्ध कर्म करने का अधिकार दिया गया है. रामायण में में इसका उल्लेख है कि सीता जी अपने ससुर राजा दशरथ जी का गया में श्राद्ध कर्म किया था.


महिलाओं द्वारा श्राद्ध करने का नियम


महिलाओं द्वारा श्राद्ध कर्म करने केलिए कुछ विशेष नियम बताये गया है. शास्त्रों के अनुसार विशेष परिस्थितियों में केवल विवाहित महिलाएं श्राद्ध कर्म कर सकती है. महिलाओं को श्राद्ध कर्म करते समय सफेद या पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए. महिलाओं को श्राद्ध कर्म में काले तिल और कुश का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उन्हें जल से ही तर्पण कर्म करना चाहिए. उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए.